अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 34/ मन्त्र 8
इ॒ममो॑द॒नं नि द॑धे ब्राह्म॒णेषु॑ विष्टा॒रिणं॑ लोक॒जितं॑ स्व॒र्गम्। स मे॒ मा क्षे॑ष्ट स्व॒धया॒ पिन्व॑मानो वि॒श्वरू॑पा धे॒नुः का॑म॒दुघा॑ मे अस्तु ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒मम् । ओ॒द॒नम् । नि । द॒धे॒ । ब्रा॒ह्म॒णेषु॑ । वि॒ष्टा॒रिण॑म् । लो॒क॒ऽजित॑म् । स्व॒:ऽगम् । स: । मे॒ । मा । क्षे॒ष्ट॒ । स्व॒धया॑ । पिन्व॑मान: । वि॒श्वऽरू॑पा । धे॒नु: । का॒म॒ऽदुघा॑ । मे॒ । अ॒स्तु॒ ॥३४.८॥
स्वर रहित मन्त्र
इममोदनं नि दधे ब्राह्मणेषु विष्टारिणं लोकजितं स्वर्गम्। स मे मा क्षेष्ट स्वधया पिन्वमानो विश्वरूपा धेनुः कामदुघा मे अस्तु ॥
स्वर रहित पद पाठइमम् । ओदनम् । नि । दधे । ब्राह्मणेषु । विष्टारिणम् । लोकऽजितम् । स्व:ऽगम् । स: । मे । मा । क्षेष्ट । स्वधया । पिन्वमान: । विश्वऽरूपा । धेनु: । कामऽदुघा । मे । अस्तु ॥३४.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 34; मन्त्र » 8
भाषार्थ -
(विष्टारिणम्) जगत् का विस्तार करनेवाले, (लोकजितम्) लोक विजयी, (स्वर्गम्) सुखप्राप्त अर्थात् आनन्दस्वरूप (इमम्) इस (ओदनम्) ओदन नामक परमेश्वर को (ब्राह्मणेषु) ब्रह्मवेत्ताओं तथा वेदवेत्ताओं में (निदधे) मैं निधिरूप में स्थापित करता हूँ: (स्वधया) निज धारणशक्ति द्वारा (पिन्वमानः) सबका धारण करनेवाला, (सः) वह ओदन-नामक परमेश्वर (में) मेरे लिए (मा क्षेष्ट) निजप्रकाश से क्षीण न हो, अर्थात् सदा मुझे निजप्रकाश प्रदान करता रहे। (विश्वरूपा) विश्व को रूप देनेवाली, (कामदुधा) कामनाओं का दोहन करनेवाली परमेश्वर-माता (धेनुः) दुधार गौ के सदृश (मे अस्तु) मेरे लिए हो।
टिप्पणी -
[मन्त्र में ओदन पद द्वारा परमेश्वर का वर्णन हुआ है। सूक्त ३४, मन्त्र ८ में ओदन नामक परमेश्वर का वर्णन कर, सूक्त ३५ के साथ सूक्त ३४ की एकविषयता का प्रदर्शन किया है। सूक्त ३५ में ओदन द्वारा परमेश्वर ही अभिप्रेत है, उसके लिए सूक्त ३५ की व्याख्या देखो, और विशेषरूप में सूक्त ३५ के मन्त्र ६ की व्याख्या। ब्राह्मण अर्थात् वेद तथा ब्रह्म के वेत्ता ही ब्राह्मनिधि को सुरक्षित रख सकते हैं, इस भाव को दर्शाने के लिए 'ब्राह्मणेषु' पद पठित हुआ है। मन्त्र में वेद और ब्रह्म के वेत्ता का परमयोगी द्वारा कथन हुआ है।] [विशेष वक्तव्य-यद्यपि सूक्त ३४ में गृह परिपक्व ओदन का वर्णन हुआ है, और सूक्त ३५ में तपश्चर्या द्वारा परिपक्व परमेश्वर का वर्णन है (मन्त्र १, तपसाऽपचत्), तथापि ओदन पद के समान होने से ओदनत्वरूप में समानविषयता दोनों सूक्तों में विद्यमान है। स्वर्गम्= अथवा इस पद द्वारा यह दर्शाया है कि परमेश्वररूप ओदन की प्राप्ति ही स्वर्ग है, स्वर्गलोक की प्राप्ति है।]