अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 22/ मन्त्र 7
सूक्त - भृग्वङ्गिराः
देवता - तक्मनाशनः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - तक्मनाशन सूक्त
तक्म॒न्मूज॑वतो गच्छ॒ बल्हि॑कान्वा परस्त॒राम्। शू॒द्रामि॑च्छ प्रप॒र्व्यं॑ तां त॑क्म॒न्वीव॑ धूनुहि ॥
स्वर सहित पद पाठतक्म॑न् । मूज॑ऽवत: । ग॒च्छ॒ । बल्हि॑कान् । वा॒ । प॒र॒:ऽत॒राम् ।शू॒द्राम् । इ॒च्छ॒ । प्र॒ऽफ॒र्व्य᳡म् । तान् । त॒क्म॒न् । विऽइ॑व । धू॒नु॒हि॒ ॥२२.७॥
स्वर रहित मन्त्र
तक्मन्मूजवतो गच्छ बल्हिकान्वा परस्तराम्। शूद्रामिच्छ प्रपर्व्यं तां तक्मन्वीव धूनुहि ॥
स्वर रहित पद पाठतक्मन् । मूजऽवत: । गच्छ । बल्हिकान् । वा । पर:ऽतराम् ।शूद्राम् । इच्छ । प्रऽफर्व्यम् । तान् । तक्मन् । विऽइव । धूनुहि ॥२२.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 22; मन्त्र » 7
भाषार्थ -
(तक्मन्) हे तक्मा-ज्वर ! (मूजवत:) मूँजवाले प्रदेशों को (गच्छ) तू जा, (बल्हिकान्) जल प्रधान प्रदेशों को, तथा आच्छादित निवास स्थानों [ गृहों] को, (वा) या (परस्तराम्) उन से भी परे के प्रदेशों को तू जा। (प्रफर्व्यम्=प्रफर्वीम्) स्फूर्ति से प्रगत [ विहीन] या विशीर्ण हुई (शूद्राम् ) शोक से गति करनेवाली कन्या को (इच्छ) तू चाहे, (ताम्) उसे (वि, इव, धूनुहि) तू विकम्पित सदृश कर।
टिप्पणी -
[प्रफर्व्यम्="पीवरी स्थूलाम् प्रफर्व्यम् प्रथमवयाः कन्या प्रफर्वी ताम्" (सायण अथर्व० ३.१७.३)। अथवा प्रफर्व्या=ञिफला विशरणे (भ्वादिः) विशीर्ण हुई कन्या। एतदनुसार शुद्रा है अल्पवयस्का कन्या, जो कि शोकान्विता है, "शुचा द्रवतीति शुद्रा"। वह पीवरी है, मोटी है, कफप्रधाना है, अत: स्फूर्ति-रहित है। ऐसी कन्या को तक्मा प्राप्त होता ही है। यह स्वाभाविक वर्णन ही है। यह तक्मा शीतज्वर प्रतीत होता है, जो कि शरीर को कंपा देता है (मन्त्र १०, शीत:) । अथवा प्रफर्व्यम्=प्रगतफरवरीम्ः स्फूर्तिरहिताम; स्फर स्फुरणे (तुदादिः), स्फूर्ति रहिता कन्या, सुस्त कन्या। "मूजवतः, बल्हिकान्, परस्तराम्"-ये वर्षा-प्रधान प्रदेश हैं, जिन्हें महावृषान् कहा है (मन्त्र ४, ५, ८)।]