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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 26

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 26/ मन्त्र 1
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अग्निः छन्दः - द्विपदा प्राजापत्या बृहती सूक्तम् - नवशाला सूक्त

    यजूं॑षि य॒ज्ञे स॒मिधः॒ स्वाहा॒ग्निः प्र॑वि॒द्वानि॒ह वो॑ युनक्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यजूं॑षि । य॒ज्ञे । स॒म्ऽइध॑: । स्वाहा॑। अ॒ग्नि: । प्र॒ऽवि॒द्वान् । इ॒ह । व॒: । यु॒न॒क्तु॒ ॥२६.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यजूंषि यज्ञे समिधः स्वाहाग्निः प्रविद्वानिह वो युनक्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यजूंषि । यज्ञे । सम्ऽइध: । स्वाहा। अग्नि: । प्रऽविद्वान् । इह । व: । युनक्तु ॥२६.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 26; मन्त्र » 1

    भाषार्थ -
    (यज्ञे) यज्ञ में (यजूंषि) यजुर्वेद के मन्त्र, (समिधः) समिधाएँ, तथा (स्वाहा) स्वाहा [पद का प्रयोग] होता है। ( प्रविद्वान् ) प्रकृष्ट विद्वान् प्रज्ञानी (अग्निः) अग्नि (वः) तुम्हें (इह) इस यज्ञकर्म में (युनक्तु) नियुक्त करे। [अग्निः=प्रज्ञानी परमेश्वर (यज:० ३२।१)।]

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