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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 26

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 26/ मन्त्र 3
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - सविता छन्दः - त्रिपदा विराड्गायत्री सूक्तम् - नवशाला सूक्त

    इन्द्र॑ उक्थाम॒दान्य॒स्मिन्य॒ज्ञे प्र॑वि॒द्वान्यु॑नक्तु सु॒युजः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑: । उ॒क्थ॒ऽम॒दानि॑ । अ॒स्मिन् । य॒ज्ञे । प्र॒ऽवि॒द्वान् । यु॒न॒क्तु॒ । सु॒ऽयुज॑: । स्वाहा॑ ॥२६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र उक्थामदान्यस्मिन्यज्ञे प्रविद्वान्युनक्तु सुयुजः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र: । उक्थऽमदानि । अस्मिन् । यज्ञे । प्रऽविद्वान् । युनक्तु । सुऽयुज: । स्वाहा ॥२६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 26; मन्त्र » 3

    भाषार्थ -
    (प्रविद्वान्) प्रज्ञानी या प्रकृष्ट-ज्ञानवाला, (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् परमेश्वर (अस्मिन् यज्ञे) इस यज्ञ में (उक्थामदानि) मोदकारी तथा हर्षप्रद सामवेद के स्तोत्रों को तथा तत्सम्बन्धी (सुयुजः) उत्तम योजनाओं को, (युनक्तु) संयुक्त करे, (स्वाहा) और स्वाहापूर्वक हविर्यज्ञों में दी जाने वाली आहुतियां हों।

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