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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 26

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 26/ मन्त्र 4
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - निविदः छन्दः - द्विपदा प्राजापत्या बृहती सूक्तम् - नवशाला सूक्त

    प्रै॒षा य॒ज्ञे नि॒विदः॒ स्वाहा॑ शि॒ष्टाः पत्नी॑भिर्वहते॒ह यु॒क्ताः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒ऽए॒षा: । य॒ज्ञे । नि॒ऽविद॑: । स्वाहा॑ । शि॒ष्टा: । पत्नी॑भि: । व॒ह॒त॒ । इ॒ह । यु॒क्ता: ॥२६.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रैषा यज्ञे निविदः स्वाहा शिष्टाः पत्नीभिर्वहतेह युक्ताः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रऽएषा: । यज्ञे । निऽविद: । स्वाहा । शिष्टा: । पत्नीभि: । वहत । इह । युक्ता: ॥२६.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 26; मन्त्र » 4

    भाषार्थ -
    (यज्ञे प्रैषाः) यज्ञकर्म में ऋत्विक द्वारा, दूसरे ऋत्विक् को 'यज' इत्यादि पद द्वारा प्रेरणा के लिए प्रयुक्त वाक्य, (निविदः) देवों के प्रति निवेदन के मन्त्र, (स्वाहा) स्वाहाकर्म तथा (पत्नीभिः ) यजमानों की पत्नियों द्वारा निर्देशों को प्राप्त कर तथा (युक्ताः) उनके सहित हे यजमानो ! (इह) इस यज्ञकर्म का (वहत) वहन करो ।

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