अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 31/ मन्त्र 9
सूक्त - शुक्रः
देवता - कृत्याप्रतिहरणम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - कृत्यापरिहरण सूक्त
यां ते॑ च॒क्रुः पु॑रुषा॒स्थे अ॒ग्नौ संक॑सुके च॒ याम्। म्रो॒कं नि॑र्दा॒हं क्र॒व्यादं॒ पुनः॒ प्रति॑ हरामि॒ ताम् ॥
स्वर सहित पद पाठयाम् । ते॒ । च॒क्रु: । पु॒रु॒ष॒ऽअ॒स्ये । अ॒ग्नौ । सम्ऽक॑सुके । च॒ । याम् । भ्रो॒कम् । नि॒:ऽदा॒हम् । क्र॒व्य॒ऽअद॑म् ।पुन॑: । प्रति॑ । ह॒रा॒मि॒ । ताम् ॥३१.९॥
स्वर रहित मन्त्र
यां ते चक्रुः पुरुषास्थे अग्नौ संकसुके च याम्। म्रोकं निर्दाहं क्रव्यादं पुनः प्रति हरामि ताम् ॥
स्वर रहित पद पाठयाम् । ते । चक्रु: । पुरुषऽअस्ये । अग्नौ । सम्ऽकसुके । च । याम् । भ्रोकम् । नि:ऽदाहम् । क्रव्यऽअदम् ।पुन: । प्रति । हरामि । ताम् ॥३१.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 31; मन्त्र » 9
भाषार्थ -
[हे राष्ट्रपति !] (ते ) तेरे (पुरुषास्थे) किसी मृतपुरुष की हड्डियों में (याम्) जिस हिंस्रक्रिया को ( चक्रुः) शत्रुओं ने किया है, (च) और (याम्) जिस हिंस्रक्रिया को (संकसुके अग्नौ) विनाशक अग्नि में किया है। (म्रैकम्) वेगवती, (निर्दाहम् ) निःशेषदाह करनेवाली (क्रव्यादम् ) मांसभक्षक अग्नि में किया है। (ताम् ) उस प्रकार की हिंस्रक्रिया को (पुनः) फिर ( प्रति ) प्रति-क्रिया रूप में (हरामि) शत्रु के प्रति मैं सम्राट् ले जाता हूँ [पहुंचाता या वापस करता हूँ।]
टिप्पणी -
[पुरुषास्थे= अन्त्येष्टि के पश्चात् संचित की गई अस्थियों में हिंस्र वस्तु को अर्थात् विस्फोटक को रख देना, इस विचार से कि जब अस्थियों को गाड़ा जायगा तो विस्फोटक कटकर गाड़नेवालों को यह हिंसित कर देगा। संकसुके = सम् + कस् To destroy (आप्टे), अन्त्येष्टिकर्म के लिए सामग्री में विस्फोटकों को मिश्रित कर देना।]