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अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 73

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  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 73/ मन्त्र 3
    सूक्त - अथर्वा देवता - घर्मः, अश्विनौ छन्दः - जगती सूक्तम् - धर्म सूक्त

    स्वाहा॑कृतः॒ शुचि॑र्दे॒वेषु॑ य॒ज्ञो यो अ॒श्विनो॑श्चम॒सो दे॑व॒पानः॑। तमु॒ विश्वे॑ अ॒मृता॑सो जुषा॒णा ग॑न्ध॒र्वस्य॒ प्रत्या॒स्ना रि॑हन्ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्वाहा॑ऽकृत: । शुचि॑: । दे॒वेषु॑ । य॒ज्ञ: । य: । अ॒श्विनो॑: । च॒म॒स॒: । दे॒व॒ऽपान॑: । तम् । ऊं॒ इति॑ । विश्वे॑ । अ॒मृता॑स: । जु॒षा॒णा: । ग॒न्ध॒र्वस्य॑ । प्रति॑ । आ॒स्ना । रि॒ह॒न्ति॒ ॥७७.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वाहाकृतः शुचिर्देवेषु यज्ञो यो अश्विनोश्चमसो देवपानः। तमु विश्वे अमृतासो जुषाणा गन्धर्वस्य प्रत्यास्ना रिहन्ति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्वाहाऽकृत: । शुचि: । देवेषु । यज्ञ: । य: । अश्विनो: । चमस: । देवऽपान: । तम् । ऊं इति । विश्वे । अमृतास: । जुषाणा: । गन्धर्वस्य । प्रति । आस्ना । रिहन्ति ॥७७.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 73; मन्त्र » 3

    भाषार्थ -
    (यः यज्ञः) जो सत्कार यज्ञ (अश्विनोः) दो अश्वियों के (चमसः) खाने का साधन है और इन (देवपानः) दो देवों के पान के लिये है, वह (शुचिः) पवित्र यज्ञ (देवेषु) अन्य विजिगीषु अधिकारियों के निमित भी (स्वाहाकृतः) खाद्य आहुतिप्रदान पूर्वक किया गया है। (विश्वे) सब (अमृतासः) मरण-रहित [विजिगीषु अन्य अधिकारी भी] (तम् उ) उस सत्कार यज्ञ का (जुषाण) प्रीतिपूर्वक सेवन करते हुए, उसमें सम्मिलित हुए, (गन्धर्वस्य) पृथिवी-धारक राजा के (आस्ना) मुख द्वारा स्वीकृति द्वारा (प्रतिरिहन्ति) खान-पान का आस्वादन करते हैं।

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