अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 73/ मन्त्र 6
उप॑ द्रव॒ पय॑सा गोधुगो॒षमा घ॒र्मे सि॑ञ्च॒ पय॑ उ॒स्रिया॑याः। वि नाक॑मख्यत्सवि॒ता वरे॑ण्योऽनुप्र॒याण॑मु॒षसो॒ वि रा॑जति ॥
स्वर सहित पद पाठउप॑ । द्र॒व॒ । पय॑सा । गो॒ऽधु॒क् । ओ॒षम् । आ । घ॒र्मे । सि॒ञ्च॒ । पय॑: । उ॒स्रिया॑या: । वि । नाक॑म् । अ॒ख्य॒त् । स॒वि॒ता । वरे॑ण्य: । अ॒नु॒ऽप्र॒यान॑म् । उ॒षस॑: । वि । रा॒ज॒ति॒ ॥७७.६॥
स्वर रहित मन्त्र
उप द्रव पयसा गोधुगोषमा घर्मे सिञ्च पय उस्रियायाः। वि नाकमख्यत्सविता वरेण्योऽनुप्रयाणमुषसो वि राजति ॥
स्वर रहित पद पाठउप । द्रव । पयसा । गोऽधुक् । ओषम् । आ । घर्मे । सिञ्च । पय: । उस्रियाया: । वि । नाकम् । अख्यत् । सविता । वरेण्य: । अनुऽप्रयानम् । उषस: । वि । राजति ॥७७.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 73; मन्त्र » 6
भाषार्थ -
(गोधुक्) हे गौ दोहने वाले ! (ओषम्१= आ उषसम्) उषा काल तक (पयसा) दोहे दुग्ध के साथ (उपद्रव) हमारे समीप आ जा, और (उस्रियायाः पयः) गौ के दुग्ध को (घर्मे) तप्त आज्य में (आ सिञ्च) डाल दे। (सविता२) सविता ने (नाकम्) [नाक सहित] द्युलोक को (वि अख्यत्) प्रकाशित कर दिया है, (वरेण्यः) श्रेष्ठ सविता (उषसः) उषा के प्रयाणम् अनु) प्रयाग के अनन्तर (विराजति) विराजमान होता है।
टिप्पणी -
[तपे आज्य प्रत्यग्र दूध के सिञ्चन का कथन मन्त्र में हुआ है। यह विधि उषाकाल में सविता के उदय होने से पूर्व हो जानी चाहिये। आज्य मिश्रित प्राप्त दूध अश्वियों का प्रातः पेय है, यह पेय बलकारी है। उषा काल के प्रयाण के बाद का काल, सविता का काल है]। [१. ओषम् = अथवा तप्तम्, उष दाहे, ताजा दूध गर्म होता है। २. उषा के प्रयाण के समनन्तर उदित सूर्य सविता है।]