Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 23
    ऋषिः - गृत्समद ऋषिः देवता - प्रजापतिर्देवता छन्दः - आर्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    3

    आ त्वा॑ जिघर्मि॒ मन॑सा घृ॒तेन॑ प्रतिक्षि॒यन्तं॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑। पृ॒थुं ति॑र॒श्चा वय॑सा बृ॒हन्तं॒ व्यचि॑ष्ठ॒मन्नै॑ रभ॒सं दृशा॑नम्॥२३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ। त्वा॒। जि॒घ॒र्मि॒। मन॑सा। घृ॒तेन॑। प्र॒ति॒क्षि॒यन्त॒मिति॑ प्रतिऽक्षि॒यन्त॑म्। भुव॑नानि। विश्वा॑। पृ॒थुम्। ति॒र॒श्चा। वय॑सा। बृ॒हन्त॑म्। व्यचि॑ष्ठम्। अन्नैः॑। र॒भ॒सम्। दृशा॑नम् ॥२३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ त्वा जिघर्मि मनसा घृतेन प्रतिक्षियन्तम्भुवनानि विश्वा । पृथुन्तिरश्चा वयसा बृहन्तँव्यचिष्ठमन्नै रभसन्दृशानम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आ। त्वा। जिघर्मि। मनसा। घृतेन। प्रतिक्षियन्तमिति प्रतिऽक्षियन्तम्। भुवनानि। विश्वा। पृथुम्। तिरश्चा। वयसा। बृहन्तम्। व्यचिष्ठम्। अन्नैः। रभसम्। दृशानम्॥२३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 23
    Acknowledgment

    Meaning -
    I take you up, O fire/wind, to study and celebrate with all my mind, besprinkled with the fragrance of ghee, co-existent with all things and all regions of the world, extensive, moving in all directions in waves, grown powerful with food, and so beautiful to perceive.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top