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  • अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 6/ मन्त्र 18
    सूक्त - बृहस्पतिः देवता - फालमणिः, वनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - मणि बन्धन सूक्त

    ऋ॒तव॒स्तम॑बध्नतार्त॒वास्तम॑बध्नत। सं॑वत्स॒रस्तं ब॒द्ध्वा सर्वं॑ भू॒तं वि र॑क्षति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋ॒तव॑: । तम् । अ॒ब॒ध्न॒त॒ । आ॒र्त॒वा: । तम् । अ॒ब॒ध्न॒त॒ । स॒म्ऽव॒त्स॒र: । तम् । ब॒ध्द्वा । सर्व॑म् । भू॒तम् । वि । र॒क्ष॒ति॒ ॥६.१८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋतवस्तमबध्नतार्तवास्तमबध्नत। संवत्सरस्तं बद्ध्वा सर्वं भूतं वि रक्षति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऋतव: । तम् । अबध्नत । आर्तवा: । तम् । अबध्नत । सम्ऽवत्सर: । तम् । बध्द्वा । सर्वम् । भूतम् । वि । रक्षति ॥६.१८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 6; मन्त्र » 18

    पदार्थ -
    (ऋतवः) ऋतुओं ने (तम्) उस [मणि, वैदिक नियम] को (अबध्नत) बाँधा है, (आर्तवाः) ऋतुओं के अवयवों ने (तम्) उस को (अबध्नत) बाँधा [माना] है, (संवत्सरः) संवत्सर [वर्ष वा काल] (तम्) उसको (बद्ध्वा) बाँधकर (सर्वम्) सब (भूतम्) जगत् को (वि) विविध प्रकार (रक्षति) पालता है ॥१८॥

    भावार्थ - कारण और कार्य रूप काल परमात्मा के नियम से संसार का उपकार करता है ॥१८॥

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