Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 6/ मन्त्र 21
    सूक्त - बृहस्पतिः देवता - फालमणिः, वनस्पतिः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - मणि बन्धन सूक्त

    तं धा॒ता प्रत्य॑मुञ्चत॒ स भू॒तं व्यकल्पयत्। तेन॒ त्वं द्वि॑ष॒तो ज॑हि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । धा॒ता । प्रति॑ । अ॒मु॒ञ्च॒त॒ । स: । भू॒तम् । वि । अ॒क॒ल्प॒य॒त् । तेन॑ । त्वम् । द्व‍ि॒ष॒त: । ज॒हि॒ ॥६.२१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं धाता प्रत्यमुञ्चत स भूतं व्यकल्पयत्। तेन त्वं द्विषतो जहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । धाता । प्रति । अमुञ्चत । स: । भूतम् । वि । अकल्पयत् । तेन । त्वम् । द्व‍िषत: । जहि ॥६.२१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 6; मन्त्र » 21

    पदार्थ -
    (तम्) उस [वैदिक नियम] को (धाता) धारणकर्त्ता [राजा] ने (प्रति अमुञ्चत) स्वीकार किया है, और (सः) उसने (भूतम्) जगत् को (वि अकल्पयत्) संभाला है। (तेन) उस [वैदिक नियम] से (त्वम्) तू (द्विषतः) वैरियों को (जहि) मार ॥२१॥

    भावार्थ - जैसे राजा वेद द्वारा राज्य का प्रबन्ध करता है, वैसे ही प्रत्येक मनुष्य करे ॥२१॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top