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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 2/ मन्त्र 2
    सूक्त - अथर्वा देवता - रुद्रः छन्दः - अनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदा विराड्जगती सूक्तम् - रुद्र सूक्त

    शुने॑ क्रो॒ष्ट्रे मा शरी॑राणि॒ कर्त॑म॒लिक्ल॑वेभ्यो॒ गृध्रे॑भ्यो॒ ये च॑ कृ॒ष्णा अ॑वि॒ष्यवः॑। मक्षि॑कास्ते पशुपते॒ वयां॑सि ते विघ॒से मा वि॑दन्त ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शुने॑ । क्रो॒ष्ट्रे । मा । शरी॑राणि । कर्त॑म । अ॒लिक्ल॑वेभ्य: । गृध्रे॑भ्य: । ये । चे॒ । कृ॒ष्णा: । अ॒वि॒ष्यव॑: । मक्षि॑का: । ते॒ । प॒शु॒ऽप॒ते॒ । वयां॑सि । ते॒ । वि॒ऽघ॒से । मा । वि॒द॒न्त॒ ॥२.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शुने क्रोष्ट्रे मा शरीराणि कर्तमलिक्लवेभ्यो गृध्रेभ्यो ये च कृष्णा अविष्यवः। मक्षिकास्ते पशुपते वयांसि ते विघसे मा विदन्त ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शुने । क्रोष्ट्रे । मा । शरीराणि । कर्तम । अलिक्लवेभ्य: । गृध्रेभ्य: । ये । चे । कृष्णा: । अविष्यव: । मक्षिका: । ते । पशुऽपते । वयांसि । ते । विऽघसे । मा । विदन्त ॥२.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 2; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (शुने) कुत्ते के लिये, (क्रोष्ट्रे) गीदड़ के लिये, (अलिक्लवेभ्यः) अपने बल से भय देनेवाले [श्येन, चील आदियों] के लिये, (गृध्रेभ्यः) खाऊ [गिद्ध आदियों] के लिये (च) और (ये) जो (अविष्यवः) हिंसाकारी (कृष्णाः) कौवे हैं [उनके लिये] (शरीराणि) [हमारे] शरीरों को (मा कर्तम्) तुम दोनों मत करो। (पशुपते) हे दृष्टिवाले [जीवों] के रक्षक ! (ते) तेरी [उत्पन्न] (मक्षिकाः) मक्खियाँ और (ते) तेरे [उत्पन्न] (वयांसि) पक्षी (विघसे) भोजन पर (मा विदन्त) [हमें] न प्राप्त होवें ॥२॥

    भावार्थ - मनुष्य सावधान रहें कि कुत्ते आदि उन्हें न सतावें और न मक्खी आदि भोजन को बिगाड़ें ॥२॥

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