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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 2/ मन्त्र 21
    सूक्त - अथर्वा देवता - रुद्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रुद्र सूक्त

    मा नो॒ गोषु॒ पुरु॑षेषु॒ मा गृ॑धो नो अजा॒विषु॑। अ॒न्यत्रो॑ग्र॒ वि व॑र्तय॒ पिया॑रूणां प्र॒जां ज॑हि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा । न॒: । गोषु॑ । पुरु॑षेषु । मा । गृ॒ध॒: । न॒: । अ॒ज॒ऽअ॒विषु॑ । अ॒न्यत्र॑ । उ॒ग्र॒ । वि । व॒र्त॒य॒ । पिया॑रूणाम् । प्र॒ऽजाम् । ज॒हि॒ ॥२.२१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा नो गोषु पुरुषेषु मा गृधो नो अजाविषु। अन्यत्रोग्र वि वर्तय पियारूणां प्रजां जहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा । न: । गोषु । पुरुषेषु । मा । गृध: । न: । अजऽअविषु । अन्यत्र । उग्र । वि । वर्तय । पियारूणाम् । प्रऽजाम् । जहि ॥२.२१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 2; मन्त्र » 21

    पदार्थ -
    [हे रुद्र परमात्मन् !] (मा) न तो (नः) हमारी (गोषु) गौओं में और (पुरुषेषु) पुरुषों में, और (मा)(नः) हमारी (अजाविषु) बकरी और भेड़ों में [मारने की] (मा गृधः) अभिलाषा कर। (उग्र) हे बलवान् ! (अन्यत्र) दूसरे [वैरियों] में (विवर्तय) घूम जा, और (पियारूणाम्) हिंसकों की (प्रजाम्) प्रजा [जनता] को (जहि) मार ॥˜२१॥

    भावार्थ - पुरुषार्थी मनुष्य परमेश्वर की शरण लेकर उपकारी दोपाये और चौपायों की रक्षा करके शत्रुओं का नाश करें ॥˜२१॥

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