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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 21
    ऋषिः - अथर्वा देवता - रुद्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रुद्र सूक्त
    383

    मा नो॒ गोषु॒ पुरु॑षेषु॒ मा गृ॑धो नो अजा॒विषु॑। अ॒न्यत्रो॑ग्र॒ वि व॑र्तय॒ पिया॑रूणां प्र॒जां ज॑हि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा । न॒: । गोषु॑ । पुरु॑षेषु । मा । गृ॒ध॒: । न॒: । अ॒ज॒ऽअ॒विषु॑ । अ॒न्यत्र॑ । उ॒ग्र॒ । वि । व॒र्त॒य॒ । पिया॑रूणाम् । प्र॒ऽजाम् । ज॒हि॒ ॥२.२१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा नो गोषु पुरुषेषु मा गृधो नो अजाविषु। अन्यत्रोग्र वि वर्तय पियारूणां प्रजां जहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा । न: । गोषु । पुरुषेषु । मा । गृध: । न: । अजऽअविषु । अन्यत्र । उग्र । वि । वर्तय । पियारूणाम् । प्रऽजाम् । जहि ॥२.२१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 2; मन्त्र » 21
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे रुद्र परमात्मन् !] (मा) न तो (नः) हमारी (गोषु) गौओं में और (पुरुषेषु) पुरुषों में, और (मा)(नः) हमारी (अजाविषु) बकरी और भेड़ों में [मारने की] (मा गृधः) अभिलाषा कर। (उग्र) हे बलवान् ! (अन्यत्र) दूसरे [वैरियों] में (विवर्तय) घूम जा, और (पियारूणाम्) हिंसकों की (प्रजाम्) प्रजा [जनता] को (जहि) मार ॥˜२१॥

    भावार्थ

    पुरुषार्थी मनुष्य परमेश्वर की शरण लेकर उपकारी दोपाये और चौपायों की रक्षा करके शत्रुओं का नाश करें ॥˜२१॥

    टिप्पणी

    २१−(मा) निषेधे (नः) अस्माकम् (गोषु) गवादिषु (पुरुषेषु) मनुष्येषु (मा गृधः) गृधु अभिकाङ्क्षायां माङि लुङि पुषादित्वात् च्लेः अङादेशः। अभिलाषं मा कुरु, नाशनायेति शेषः (नः) (अजाविषु) अजेषु अविषु च (अन्यत्र) अन्येषु शत्रुषु (उग्र) हे महाबलवन् (वि) विविधम् (वर्तय) वर्तस्व (पियारूणाम्) पीयतिर्हिंसाकर्मा-निघ० ४।२५। अङ्गिमदिमन्दिभ्य आरन्। उ० ३।१३४। अत्र बाहुलकात् पीयतेः-आरुप्रत्ययो ह्रस्वश्च। यद्वा पि गतौ-आरु। हिंसकानाम् (प्रजाम्) जनताम् (जहि) नाशय ॥˜

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    विषय

    पियारूप-प्रजा-हनन

    पदार्थ

    १. हे (उग्र) = उद्गुर्णबल प्रभो! (न:) = हमारी (गोषु) = गौवों में व (पुरुषेषु) = पुरुषों में मा गृधः-हिंसित करने के लिए कामना न कीजिए। इसीप्रकार (न:) = हमारी (अजा-अविषु) = बकरियों व भेड़ों में (मा) = [गृधः] हिंसा की कामना न कीजिए। ये सब हे पशुपते! आप द्वारा रक्षित ही हों। २. हे प्रभो! आप अपने वज्र को (अन्यत्र) = हमसे भिन्न स्थान में ही (विवर्तय) = प्राप्त कराइए-फेंकिए। (पियारूणाम्) = [पीयतिहिंसाकर्मा-नि०] हिंसकों की (प्रजा जहि) = प्रजा को ही विनष्ट कीजिए।

    भावार्थ

    पशुपति के प्रसाद से हमारी गौवें, मनुष्य, भेड़ व बकरियों सब सुरक्षित हों। प्रभु का वन हिंसकों को ही विनष्ट करनेवाला हो।

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    भाषार्थ

    (नः) हमारी (गोषु) गौओं तथा (पुरुषेषु) पुरुषों के सम्बन्ध में (मा गृधः) अभिकाङ्क्षा न कर, (मा)(नः) हमारी (अजाविषु) बकरियों और भेड़ों के सम्बन्ध में अभिकाङ्क्षा कर। (उग्र) हे तेजस्विन्! (अन्यत्र) हम से अन्य स्थानों में (विवर्तय) विरोध का वर्ताव कर, अर्थात् (पियारूणाम्) हिंस्र व्यक्तियों की (प्रजाम् जहि) प्रजा का हनन कर।

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    विषय

    रुद्र ईश्वर के भव और शर्व रूपों का वर्णन।

    भावार्थ

    हे (उग्र) शक्तिमन् ! (नः) हमारे (गोषु) गौओं (पुरुषेषु) पुरुषों और (अजाविषु) बकरी और भेड़ों पर (मा गृधः) लालच मत कर। तू (अन्यत्र) दूसरे स्थान पर (विवर्तय) लौट जा। (पियारूणां प्रजां जहि) हिंसकों की प्रजा को विनाश कर।

    टिप्पणी

    ‘मानोश्वेषु गोषु’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। रुद्रो देवता। १ परातिजागता विराड् जगती, २ अनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदा जगती चतुष्पात्स्वराडुष्णिक्, ४, ५, ७ अनुष्टुभः, ६ आर्षी गायत्री, ८ महाबृहती, ९ आर्षी, १० पुरः कृतिस्त्रिपदा विराट्, ११ पञ्चपदा विराड् जगतीगर्भा शक्करी, १२ भुरिक्, १३, १५, १६ अनुष्टुभौ, १४, १७–१९, २६, २७ तिस्त्रो विराड् गायत्र्यः, २० भुरिग्गायत्री, २१ अनुष्टुप्, २२ विषमपादलक्ष्मा त्रिपदा महाबृहती, २९, २४ जगत्यौ, २५ पञ्चपदा अतिशक्वरी, ३० चतुष्पादुष्णिक् ३१ त्र्यवसाना विपरीतपादलक्ष्मा षट्पदाजगती, ३, १६, २३, २८ इति त्रिष्टुभः। एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Rudra

    Meaning

    Pray do not covet to deprive us of our cows, our people, our sheep and goats. O lord of passion and punishment, let your strike fall elsewhere. Strike the forces of hate and violence, strike their manpower.

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    Translation

    (Be) not (greedy) for our kine, our men; be not greedy for our goats and sheep; elsewhere, O formidable one, roll forth (thy missile); smite the progeny of the mockers (piyaruna).

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    Translation

    May not this fire tend towards our cows and men to destroy them and may not towards our goats and sheep. Let this fierce fire take its course towards those other things and let it destroy the bulk of biting diseases and their germs.

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    Translation

    Covet not thou our kine or men, covet not thou our goats or sheep. Elsewhere, O strong general! turn thine aim. Destroy the family of the violent.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २१−(मा) निषेधे (नः) अस्माकम् (गोषु) गवादिषु (पुरुषेषु) मनुष्येषु (मा गृधः) गृधु अभिकाङ्क्षायां माङि लुङि पुषादित्वात् च्लेः अङादेशः। अभिलाषं मा कुरु, नाशनायेति शेषः (नः) (अजाविषु) अजेषु अविषु च (अन्यत्र) अन्येषु शत्रुषु (उग्र) हे महाबलवन् (वि) विविधम् (वर्तय) वर्तस्व (पियारूणाम्) पीयतिर्हिंसाकर्मा-निघ० ४।२५। अङ्गिमदिमन्दिभ्य आरन्। उ० ३।१३४। अत्र बाहुलकात् पीयतेः-आरुप्रत्ययो ह्रस्वश्च। यद्वा पि गतौ-आरु। हिंसकानाम् (प्रजाम्) जनताम् (जहि) नाशय ॥˜

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