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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 26
    ऋषिः - अथर्वा देवता - रुद्रः छन्दः - विराड्गायत्री सूक्तम् - रुद्र सूक्त
    64

    मा नो॑ रुद्र त॒क्मना॒ मा वि॒षेण॒ मा नः॒ सं स्रा॑ दि॒व्येना॒ग्निना॑। अ॒न्यत्रा॒स्मद्वि॒द्युतं॑ पातयै॒ताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा । न॒: । रु॒द्र॒ । त॒क्मना॑ । मा । वि॒षेण॑ । मा । न॒: । सम् । स्रा॒: । दि॒व्येन॑ । अ॒ग्निना॑ । अ॒न्यत्र॑ । अ॒स्मत् । वि॒ऽद्युत॑म् । पा॒त॒य॒ । ए॒ताम् ॥२.२६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा नो रुद्र तक्मना मा विषेण मा नः सं स्रा दिव्येनाग्निना। अन्यत्रास्मद्विद्युतं पातयैताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा । न: । रुद्र । तक्मना । मा । विषेण । मा । न: । सम् । स्रा: । दिव्येन । अग्निना । अन्यत्र । अस्मत् । विऽद्युतम् । पातय । एताम् ॥२.२६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 2; मन्त्र » 26
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

    पदार्थ

    (रुद्र) हे रुद्र ! [दुःखनाशक परमेश्वर] (मा) न तो (नः) हमें (तक्मना) दुःखी जीवन करनेवाले [ज्वर आदि] से, (मा)(विषेण) विष से, और (मा)(नः) हमें (दिव्येन) सूर्य के (अग्निना) अग्नि से (संस्राः) संयुक्त कर। (अस्मत्) हम से (अन्यत्र) दूसरों [अर्थात् दुराचारियों] पर (एताम्) इस (विद्युतम्) लपलपाती [बिजुली] को (पातय) गिरा ॥˜२६॥

    भावार्थ

    मनुष्य प्रयत्नपूर्वक परमेश्वर का ध्यान रखकर कुपथ छोड़ कर रोगों और उत्पातों से सुरक्षित रहें ॥˜२६॥

    टिप्पणी

    २६−(मा) निषेधे (नः) अस्मान् (तक्मना) अ० १।२५।१। कृच्छ्रजीवनकारिणा ज्वरादिना (मा) (विषेण) (मा) (नः) (संस्राः) म० १९। संसृज। संयोजय (दिव्येन) दिवि सूर्ये भवेन (अग्निना) तापेन (अन्यत्र) अन्येषु। दुष्टेषु (अस्मत्) अस्मत्तः (विद्युतम्) विद्योतमानां तडितम् (पातय) प्रक्षिप (एताम्) दृश्यमानाम् ॥˜

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    विषय

    तक्मा, विष, दिव्य अग्नि

    पदार्थ

    १. हे (रुद्र) = दुष्टों को रुलानेवाले प्रभो ! (न:) = हमें (तक्मना) = जीवन को कष्टमय बनानेवाले ज्वर से (मा संस्त्रा:) = मत संसृष्ट कीजिए। (विषेण) = प्राणापहारी विष से (मा) = मत संसृष्ट कीजिए तथा (न:) = हमें (दिव्येन अग्निना) = अन्तरिक्ष में होनेवाली विधुदूप अग्नि से (मा) = मत संसृष्ट कीजिए। २. हे रुद्र! (एताम्) = इस (विद्युतम्) = विद्युत् को (अस्मत्) = हमसे अन्यत्र अन्य स्थान में (पातय) = गिराइए।

    भावार्थ

    हम पवित्र जीवनवाले बनते हुए सर्वत्र प्रभु की महिमा को देखें और ज्वर, विष व विद्युत्पतन द्वारा असमय में विनष्ट न हों।

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    भाषार्थ

    (रुद्र) हे पापियों को रुलाने वाले ! (नः) हम सुकर्मियों को, (तक्मना) जीवन को कष्टमय करने वाले ज्वर के साथ (मा संस्राः) न संबद्ध कर, (मां विषेण१) न विष के साथ (मा)(नः) हमें (दिव्येन अग्निना) दिव्य अग्नि के साथ सम्बद्ध कर। (अस्मत्) हम से (अन्यत्र) भिन्न स्थान में (एताम् विद्युतम्) इस विद्युत को (पातय) गिरा।

    टिप्पणी

    [संस्राः = संसृज (लुङ् लकार)। तक्मना = तकि कृच्छ्र जीवने। दिव्य अग्नि विद्युत्]। [१. विष=ज्वरादि का उत्पादक विष, अर्थात् Tox in।]

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    विषय

    रुद्र ईश्वर के भव और शर्व रूपों का वर्णन।

    भावार्थ

    हे रुद्र ! (नः तक्मना मा से स्राः) हमें ज्वर के समान कष्टदायी रोग से पीड़ित मत कर। (विषेण मा) विष से भी हमें पीढ़ित मत कर (श्रस्मद् अन्यत्र एताम् विद्युतं पातय) हम से अन्य स्थान पर इस बिजुली को डाल।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। रुद्रो देवता। १ परातिजागता विराड् जगती, २ अनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदा जगती चतुष्पात्स्वराडुष्णिक्, ४, ५, ७ अनुष्टुभः, ६ आर्षी गायत्री, ८ महाबृहती, ९ आर्षी, १० पुरः कृतिस्त्रिपदा विराट्, ११ पञ्चपदा विराड् जगतीगर्भा शक्करी, १२ भुरिक्, १३, १५, १६ अनुष्टुभौ, १४, १७–१९, २६, २७ तिस्त्रो विराड् गायत्र्यः, २० भुरिग्गायत्री, २१ अनुष्टुप्, २२ विषमपादलक्ष्मा त्रिपदा महाबृहती, २९, २४ जगत्यौ, २५ पञ्चपदा अतिशक्वरी, ३० चतुष्पादुष्णिक् ३१ त्र्यवसाना विपरीतपादलक्ष्मा षट्पदाजगती, ३, १६, २३, २८ इति त्रिष्टुभः। एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Rudra

    Meaning

    O Rudra, afflict us not with the fever of life, nor with poison, nor with fire and lightning from above. Let this lightning strike elsewhere from us.

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    Translation

    Do not, O Rudra, unite (sum-sra) us with the takman, not with poison; not with the fire of heaven; elsewhere than (on) us make that lightning fall.

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    Translation

    Let not this fire trouble us with fever, let it not trouble us with poisonous effect of diseases and let it not trouble us with heat which comes down from heavenly region. Let it fall its lightning bolt elsewhere besides us.

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    Translation

    O God, overwhelm us not with fever or with poison, nor, with the fire from the Sun. Elsewhere and not on us, cast down this lightning.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २६−(मा) निषेधे (नः) अस्मान् (तक्मना) अ० १।२५।१। कृच्छ्रजीवनकारिणा ज्वरादिना (मा) (विषेण) (मा) (नः) (संस्राः) म० १९। संसृज। संयोजय (दिव्येन) दिवि सूर्ये भवेन (अग्निना) तापेन (अन्यत्र) अन्येषु। दुष्टेषु (अस्मत्) अस्मत्तः (विद्युतम्) विद्योतमानां तडितम् (पातय) प्रक्षिप (एताम्) दृश्यमानाम् ॥˜

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