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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 5
    सूक्त - अथर्वा देवता - रुद्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रुद्र सूक्त
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    मुखा॑य ते पशुपते॒ यानि॒ चक्षूं॑षि ते भव। त्व॒चे रू॒पाय॑ सं॒दृशे॑ प्रती॒चीना॑य ते॒ नमः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मुखा॑य । ते॒ । प॒शु॒ऽप॒ते॒ । यानि॑ । चक्षूं॑षि । ते॒ । भ॒व॒ । त्व॒चे । रू॒पाय॑ । स॒म्ऽदृशे॑ । प्र॒ती॒चीना॑य । ते॒ । नम॑: ॥२.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मुखाय ते पशुपते यानि चक्षूंषि ते भव। त्वचे रूपाय संदृशे प्रतीचीनाय ते नमः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मुखाय । ते । पशुऽपते । यानि । चक्षूंषि । ते । भव । त्वचे । रूपाय । सम्ऽदृशे । प्रतीचीनाय । ते । नम: ॥२.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 2; मन्त्र » 5
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    हिन्दी (1)

    विषय

    ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

    पदार्थ

    (पशुपते) हे दृष्टिवालों के रक्षक ! (ते) तुझे (मुखाय) [हमारे] मुख के हित के लिये, (भव) हे सुख उत्पादक ! (ते) तुझे, (यानि) जो (चक्षूंषि) [हमारे] दर्शनसाधन हैं [उनके लिये]। (त्वचे) [हमारी] त्वचा के लिये (रूपाय) सुन्दरता के लिये, (संदृशे) आकार के लिये (प्रतीचीनाय) प्रत्यक्ष व्यापक (ते) तुझे (नमः) नमस्कार है ॥५॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमेश्वर की उपासनापूर्वक अपने मुख आदि इन्द्रियों और त्वचा आदि को उपयोगी बनाकर पुरुषार्थी होवें ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(मुखाय) मुखहिताय (ते) तुभ्यम् (पशुपते) हे दृष्टिमतां रक्षक (यानि) (चक्षूंषि) दर्शनसाधनानि (भव) हे सुखोत्पादक (त्वचे) त्वचाहिताय (रूपाय) सौन्दर्याय (संदृशे) सम्यग् दर्शनीयाय आकाराय (प्रतीचीनाय) अ० ४।३२।६। प्रत्यक्षं व्यापकाय (ते) तुभ्यम् (नमः) नमस्कारः ॥

    इंग्लिश (1)

    Subject

    Rudra

    Meaning

    O Pashupati, lord of living forms, O Bhava, lord of existence and creation, homage of worship to you, to your face as the universe is, your eyes that the infinite stars are. Salutations to you, beautiful and beatific cover of existence as you are, and salutations to you for your direct manifestation in the universe.

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(मुखाय) मुखहिताय (ते) तुभ्यम् (पशुपते) हे दृष्टिमतां रक्षक (यानि) (चक्षूंषि) दर्शनसाधनानि (भव) हे सुखोत्पादक (त्वचे) त्वचाहिताय (रूपाय) सौन्दर्याय (संदृशे) सम्यग् दर्शनीयाय आकाराय (प्रतीचीनाय) अ० ४।३२।६। प्रत्यक्षं व्यापकाय (ते) तुभ्यम् (नमः) नमस्कारः ॥

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