अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 8
स नो॑ भ॒वः परि॑ वृणक्तु वि॒श्वत॒ आप॑ इवा॒ग्निः परि॑ वृणक्तु नो भ॒वः। मा नो॒ऽभि मां॑स्त॒ नमो॑ अस्त्वस्मै ॥
स्वर सहित पद पाठस: । न॒: । भ॒व: । परि॑ । वृ॒ण॒क्तु॒ । वि॒श्वत॑: । आप॑:ऽइव । अ॒ग्नि: । परि॑ । वृ॒ण॒क्तु॒ । न॒: । भ॒व: । मा । न॒: । अ॒भि । मां॒स्त॒ । नम॑: । अ॒स्तु॒ । अ॒स्मै॒ ॥२.८॥
स्वर रहित मन्त्र
स नो भवः परि वृणक्तु विश्वत आप इवाग्निः परि वृणक्तु नो भवः। मा नोऽभि मांस्त नमो अस्त्वस्मै ॥
स्वर रहित पद पाठस: । न: । भव: । परि । वृणक्तु । विश्वत: । आप:ऽइव । अग्नि: । परि । वृणक्तु । न: । भव: । मा । न: । अभि । मांस्त । नम: । अस्तु । अस्मै ॥२.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।
पदार्थ
(सः) वह (भवः) भव [सुख उत्पन्न करनेवाला परमेश्वर] (नः) हमें [दुष्ट कर्मों से] (विश्वतः) सब ओर (परि वृणक्तु) बरजता [रोकता] रहे, (इव) जैसे (आपः) जल और (अग्निः) अग्नि [एक दूसरे को रोकते हैं, वैसे ही] (भवः), भव [सुख उत्पन्न करनेवाला परमेश्वर] (नः) हमें (परि वृणक्तु) बरजता रहे। (नः) हमें (मा अभि मांस्त) वह न सतावे, (अस्मै) इस [परमेश्वर] को (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे ॥८॥
भावार्थ
जैसे जल अग्नि से और अग्नि जल से पृथक् होते हैं, वैसे ही हम दुष्ट कर्मों से पृथक् रहकर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करके सुरक्षित रहें ॥८॥
टिप्पणी
८−(सः) प्रसिद्धः (नः) अस्मान् (भवः) म० ३। सुखोत्पादकः (परि वृणक्तु) परितो वर्जयतु, दुष्टकर्मस्य इति शेषः (विश्वतः) सर्वतः (आपः) जलानि (इव) यथा (अग्निः) (नः) अस्मान् (मा अभि मांस्त) अभिपूर्वो मन्यतिर्हिंसने-माङि लुङि रूपम्। न हिनस्तु (नमः) नमस्कारः (अस्तु) (अस्मै) भवाय। अन्यद् गतम् ॥
विषय
प्रभु नमन व पापवर्जन
पदार्थ
१. (सः भव:) = वह सुखोत्पादक प्रभु (न:) = हमें (विश्वतः परिवृणक्तु) = सब ओर से उपद्रवों से वर्जित [रहित] करे। (इव) = जैसे (अग्निः) = दग्ध करता हुआ (अग्नि आप:) = जलों को छोड़ देता है, इसी प्रकार (भव:) = वह उत्पादक प्रभु (न:) = हमें (परिवृणक्तु) = उपद्रवसमूह से परिवर्जित करे। २. पाप से रहित (न:) = हमें (मा अभिमांस्त) = वे प्रभु हिंसित न करें [मन्यतिहिंसाकर्मा]। (अस्मै) = इस प्रभु के लिए (नमः अस्तु) = हमारा सदा नमस्कार हो। यह प्रभु-नमन ही वस्तुतः हमें पापों व उपद्रवों से बचानेवाला बनता है।
भावार्थ
प्रभकृपा से पाप हमें इसप्रकार छोड़ जाएँ, जैसेकि अग्नि जलों को छोड़ जाता है। हम रुद्र को प्रणाम करनेवाले बनें, रुद्र हमारे पापों का विनाश करें।
भाषार्थ
(सः भवः) वह सृष्ट्युत्पादक परमेश्वर (विश्वतः) सब प्रकार के [दुःखों से] (नः) हमें (परि वृणक्तु) छुड़ाए, (आपः इव अग्निः) जैसे जल और अग्नि परस्पर को त्याग देते हैं वैसे (भवः) सृष्ट्युत्पादक परमेश्वर (नः) हमें (परिवृणक्तु) दुःखों से छुड़ाए। (नः, मा, अभिमांस्त)१ भव हमारी हिंसा न करे। (अस्मै नमः अस्तु) इसे हमारा नमस्कार हो।
टिप्पणी
[आपः= जैसे अग्नि जल को त्याग देती है,-इस अर्थ में आपः के स्थान में "अप:" पाठ चाहिये।] [१. अभिपूर्वो मन्यतिः हिंसने वर्तते। माङि लुङि रूपम् (सायण)।]
विषय
रुद्र ईश्वर के भव और शर्व रूपों का वर्णन।
भावार्थ
(सः भवः) वह सर्व संसार का उत्पादक परमेश्वर (नः) हमें (विश्वतः) सर्व ओर से (परिवृणक्तु) रक्षा करे, हमें अपने संहारकारी कोप से बचाए रखे। जैसे (आपः अग्निः इव) अनि भड़क कर भी जलों या जलाशय को विना जलाये छोड़ जाता है उसी प्रकार (नः भवः परिवृणक्तु) वह सर्व प्रभु अपने संहार से हमें छोड़ दे। समस्त जीवलोक के संहार होते हुए भी हम चिरायु होकर रहें। (नः) हमें (अभि मांस्त) मत संहार करे (अस्मै नमः अस्तु) उसको हमारा नमस्कार हो।
टिप्पणी
(द्वि०) ‘आपैवाग्नि परि’ (तृ०) ‘मग्नो अभि’ इति पैप्प० सं०। ‘मंस्त’ इति सायणाभिमतः पाठः।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। रुद्रो देवता। १ परातिजागता विराड् जगती, २ अनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदा जगती चतुष्पात्स्वराडुष्णिक्, ४, ५, ७ अनुष्टुभः, ६ आर्षी गायत्री, ८ महाबृहती, ९ आर्षी, १० पुरः कृतिस्त्रिपदा विराट्, ११ पञ्चपदा विराड् जगतीगर्भा शक्करी, १२ भुरिक्, १३, १५, १६ अनुष्टुभौ, १४, १७–१९, २६, २७ तिस्त्रो विराड् गायत्र्यः, २० भुरिग्गायत्री, २१ अनुष्टुप्, २२ विषमपादलक्ष्मा त्रिपदा महाबृहती, २९, २४ जगत्यौ, २५ पञ्चपदा अतिशक्वरी, ३० चतुष्पादुष्णिक् ३१ त्र्यवसाना विपरीतपादलक्ष्मा षट्पदाजगती, ३, १६, २३, २८ इति त्रिष्टुभः। एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Rudra
Meaning
May Bhava protect us all round. As water protects against fire and fire protects against freezing waters, so may Bhava protect us against contradictions. May Bhava never destroy us. Homage of worship be to Bhava.
Translation
Let this Bhava avoid us on every side; as fire the waters, let Bhava avoid us; let him not plot against us, homage be to him.
Translation
Let this constructive fire save us from all sides like waters surrounding fire. Let it save us and let it not destroy us. Praiseworthy is this fire.
Translation
May God, the Creator of the universe, avoid us from ignoble acts, Avoid us even as fire avoids the waters. Let Him not harm us. To Him be homage!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(सः) प्रसिद्धः (नः) अस्मान् (भवः) म० ३। सुखोत्पादकः (परि वृणक्तु) परितो वर्जयतु, दुष्टकर्मस्य इति शेषः (विश्वतः) सर्वतः (आपः) जलानि (इव) यथा (अग्निः) (नः) अस्मान् (मा अभि मांस्त) अभिपूर्वो मन्यतिर्हिंसने-माङि लुङि रूपम्। न हिनस्तु (नमः) नमस्कारः (अस्तु) (अस्मै) भवाय। अन्यद् गतम् ॥
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