अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 20
मा नो॑ हिंसी॒रधि॑ नो ब्रूहि॒ परि॑ णो वृङ्ग्धि॒ मा क्रु॑धः। मा त्वया॒ सम॑रामहि ॥
स्वर सहित पद पाठमा । न॒: । हिं॒सी॒: । अधि॑ । न॒: । ब्रू॒हि॒ । परि॑ । न॒: । वृ॒ङ्ग्धि॒ । मा । क्रु॒ध॒: । मा । त्वया॑ । सम् । अ॒रा॒म॒हि॒ ॥२.२०॥
स्वर रहित मन्त्र
मा नो हिंसीरधि नो ब्रूहि परि णो वृङ्ग्धि मा क्रुधः। मा त्वया समरामहि ॥
स्वर रहित पद पाठमा । न: । हिंसी: । अधि । न: । ब्रूहि । परि । न: । वृङ्ग्धि । मा । क्रुध: । मा । त्वया । सम् । अरामहि ॥२.२०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।
पदार्थ
[हे रुद्र परमेश्वर !] (नः) हमें (मा हिंसीः) मत कष्ट दे, (नः) हमें (अधि) ईश्वर होकर (ब्रूहि) उपदेश कर, (नः) हमें [पाप से] (परि वृङ्ग्धि) सर्वथा अलग रख, (मा क्रुधः) क्रोध मत कर। (त्वया) तेरे साथ (मा सम् अरामहि) हम समर [युद्ध] न करें ॥२०॥
भावार्थ
जो मनुष्य परमेश्वर की आज्ञा में चलते हैं, वे पुरुषार्थी पुरुष अपराध से बचकर सदा सुखी रहते हैं ॥२०॥
टिप्पणी
२०−(नः) अस्मान् (मा हिंसीः) मा वधीः (अधि) ईश्वरत्वेन (नः) अस्मान् (परि) सर्वतः (वृङ्ग्धि) वर्जय। वियोजय (मा क्रुधः) म० १९। (त्वया) (मा सम् अरामहि) म० ७। समरं युद्धं न करवाम ॥
विषय
प्रभु के निर्देशानुसार
पदार्थ
१. हे पशुपते! (न: मा हिंसी:) = हमें हिसित मत कीजिए। (न:) = हमें (अधिब्रुहि) = आधिक्येन ज्ञानोपदेश कीजिए। (न:) = हमें (परिवन्धि) = सब पापों से बचाइए। (मा धः) = हमपर क्रोध मत कीजिए। सदा शुभाचरण करते हुए हम आपके प्रिय बनें। २.हे प्रभो! हम त्वया आपके साथ (मा समरामहि) = समर [युद्ध] की स्थिति में न हों। सदा आपके निर्देशों के अनुसार चलनेवाले हों।
भावार्थ
हम प्रभु से ज्ञान प्राप्त करके तदनुसार गति करते हुए कभी प्रभु के क्रोध के पात्र न हों।
भाषार्थ
(नः) हमारी (मा हिंसीः) हिंसा न कर, अपितु (नः) हमें (अधिब्रूहि) स्वाधिकार पूर्वक सदुपदेश दे। (नः) हमें (परि वृङ्ग्धि) हिंसाकर्म से छोड़ दे, (मा क्रुधः) हम पर क्रोध न कर। (त्वया) तेरे साथ (मा समरामहि) हम समर भावना में न हों, अर्थात् तेरे नियमों तथा सदुपदेशों के विपरीत हम न चलें।
विषय
रुद्र ईश्वर के भव और शर्व रूपों का वर्णन।
भावार्थ
(नः) हमें (मा हिंसीः) विनाश मत कर। (नः अधिब्रूहि) हमें शिक्षित कर। (नः परि वृङ्-ग्धि) हमारी सब ओर से रक्षा कर। (मा क्रुधः) हम पर कोप मत कर। (त्वया) तुझ से हम (मा सम् अरामहि) युद्ध न करें, तेरे विपरीत न जावें।
टिप्पणी
(प्र०) ‘रधिब्रूहि’ (च०) ‘रामसि’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। रुद्रो देवता। १ परातिजागता विराड् जगती, २ अनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदा जगती चतुष्पात्स्वराडुष्णिक्, ४, ५, ७ अनुष्टुभः, ६ आर्षी गायत्री, ८ महाबृहती, ९ आर्षी, १० पुरः कृतिस्त्रिपदा विराट्, ११ पञ्चपदा विराड् जगतीगर्भा शक्करी, १२ भुरिक्, १३, १५, १६ अनुष्टुभौ, १४, १७–१९, २६, २७ तिस्त्रो विराड् गायत्र्यः, २० भुरिग्गायत्री, २१ अनुष्टुप्, २२ विषमपादलक्ष्मा त्रिपदा महाबृहती, २९, २४ जगत्यौ, २५ पञ्चपदा अतिशक्वरी, ३० चतुष्पादुष्णिक् ३१ त्र्यवसाना विपरीतपादलक्ष्मा षट्पदाजगती, ३, १६, २३, २८ इति त्रिष्टुभः। एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Rudra
Meaning
Pray do not hurt us. Speak to us, advise and admonish. Spare us the violence and cruelty of nature. Pray do not be angry with us. And we would never violate your law and life’s discipline.
Translation
Do not harm us; bless us; avoid us; be not angry; let us not come into collision with thee.
Translation
This constructive igneous substance does not do any harm to us, this make us to speak, protects us and does make us angry. We cannot fight against this fire.
Translation
O God, do us no harm, instruct us, keep sin away from us, be not angry! Never let us contend with Thee.
Footnote
The verse is applicable to the king as well.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२०−(नः) अस्मान् (मा हिंसीः) मा वधीः (अधि) ईश्वरत्वेन (नः) अस्मान् (परि) सर्वतः (वृङ्ग्धि) वर्जय। वियोजय (मा क्रुधः) म० १९। (त्वया) (मा सम् अरामहि) म० ७। समरं युद्धं न करवाम ॥
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