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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 22
    ऋषिः - अथर्वा देवता - रुद्रः छन्दः - त्रिपदा विषमपादलक्ष्मा महाबृहती सूक्तम् - रुद्र सूक्त
    81

    यस्य॑ त॒क्मा कासि॑का हे॒तिरेक॒मश्व॑स्येव॒ वृष॑णः॒ क्रन्द॒ एति॑। अ॑भिपू॒र्वं नि॒र्णय॑ते॒ नमो॑ अस्त्वस्मै ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यस्य॑ । त॒क्मा । कासि॑का । हे॒ति: । एक॑म् । अश्व॑स्यऽइव । वृष॑ण: । क्रन्द॑: । एति॑ । अ॒भि॒ऽपू॒र्वम् । नि॒:ऽनय॑ते । नम॑: । अ॒स्तु॒ । अ॒स्मै॒ ॥२.२२।


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्य तक्मा कासिका हेतिरेकमश्वस्येव वृषणः क्रन्द एति। अभिपूर्वं निर्णयते नमो अस्त्वस्मै ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यस्य । तक्मा । कासिका । हेति: । एकम् । अश्वस्यऽइव । वृषण: । क्रन्द: । एति । अभिऽपूर्वम् । नि:ऽनयते । नम: । अस्तु । अस्मै ॥२.२२।

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 2; मन्त्र » 22
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

    पदार्थ

    (यस्य) जिस [रुद्र] का (हेतिः) वज्र (तक्मा) तुच्छ जीवन करनेवाला [ज्वर] और (कासिका) खाँसी (एकम्) एक [उपद्रवी] को (एति) प्राप्त होती है, (इव) जैसे (वृषणः) बलवान् (अश्वस्य) घोड़े के (क्रन्दः) हिनहिनाने का शब्द। (अभिपूर्वम्) एक-एक को यथाक्रम (निर्णयते) निर्णय करनेवाले (अस्मै) इस [रुद्र] को (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे ॥˜२२॥

    भावार्थ

    प्रत्येक उपद्रवी मनुष्य परमेश्वर के नियम से ज्वर आदि अनेक पीड़ाएँ प्राप्त करता है ॥˜२२॥

    टिप्पणी

    २२−(यस्य) रुद्रस्य (तक्मा) अ० १।२५।१। तकि कृच्छ्रजीवने-मनिन्। कृच्छ्रजीवनकरो ज्वरः (कासिका) कासृ शब्दकुत्सायाम्-घञ्, स्वार्थे कन्, अत इत्वम्। कुत्सितशब्दकारी रोगविशेषः। कासः (हेतिः) वज्रः (एकम्) अपकारिणम् (अश्वस्य) (इव) यथा (वृषणः) बलवतः (क्रन्दः) हेषा शब्दः (एति) प्राप्नोति (अभिपूर्वम्) पूर्वं पूर्वमभिलक्ष्य। यथाक्रमम् (निर्णयते) निः+णीञ् प्रापणे-शतृ। निर्णयं निश्चयं कुर्वते। अन्यद् गतम् ॥˜

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    विषय

    'तक्मा कासिका'रूप रुद्रहेति

    पदार्थ

    १. (यस्य) = जिस रुद्र की (तक्मा) = जीवन को कष्टप्रद बना देनेवाली (कासिका) = कुत्सित शब्दकारिणी ज्वरादि पीड़ा (हेति:) = हनन-साधन-आयुधरूप होती हुई (एकम्) = एक अपकारी पुरुष को इसप्रकार (एति) = प्राप्त होती है (इव) = जैसेकि (वृषण:) = शक्तिशाली (अश्वस्य) = घोड़े का (क्रन्दः) = हेषा शब्द ही हो, अर्थात् प्रभु ज्वरयुक्त खाँसी को भी पापकर्म के दण्ड के रूप में प्राप्त कराते हैं। २. (अभिपूर्वम्) = पूर्वजन्म के कर्मों का लक्ष्य करके (निर्णयते) = दण्ड का निर्णय करते हुए (अस्मै नमः अस्तु) = इस रुद्र के लिए नमस्कार हो।

    भावार्थ

    रुद्र प्रभुकों के अनुसार दण्ड का निर्णय करते हुए अपकारी पुरुष को ज्वरयुक्त खाँसी प्राप्त कराते हैं। यह उस पापकारी के जीवन को कष्टमय बनाती हुई उसे पाप से रुकने की प्रेरणा देती है।

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    भाषार्थ

    (यस्य) जिस परमेश्वर का (तकमा) ज्वर; तथा (कासिका) कुत्सित शब्द करने वाली खांसी (हेतिः) अस्त्रः है, जो खांसी (एकम्) किसी एक पुरुष को, (वृषणः) शक्तिशाली (अश्वस्य) अश्व के (क्रन्दः) ह्रेषा शब्द की (इव) तरह (एति) प्राप्त होती है, वह हेति (निर्णयते) मानो, स्वयं, निर्णय करती है कि (अभिपूर्वम्) किसे पहिले प्राप्त होना है।

    टिप्पणी

    [ज्वर और कासिका = कासिका "कुक्कर-खांसी" प्रतीत होती है, जिसे कि "Fertussis, तथा whooping-cough" कहते हैं। यह ह्रेषा की तरह खांसते समय, ऊंचा शब्द करती है। यह पहिले किसी एक व्यक्ति को प्राप्त होती है, तदनन्तर सम्पर्क द्वारा अन्यत्र फैल जाती है। यह कमजोर व्यक्ति को मानो स्वयं चुनने का निर्णय करती है। ह्रेषा = अश्व के नथनों का शब्द, हिनहिनाना]

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    विषय

    रुद्र ईश्वर के भव और शर्व रूपों का वर्णन।

    भावार्थ

    रुद के हथियारों का वर्णन करते हैं। (यस्य) जिस रुद्र के (तक्मा) कष्टदायी ज्वर और (कासिका) खांसी (हेतिः) हथियार हैं। वे (वृषणः) बलवान् (अश्वस्य) घोड़े के (कन्द्र इव) हिन-हिनाने के समान (एकम् एति) किसी भी पुरुष पर आक्रमण करते हैं। (अभिपूर्वम्) पूर्व कर्मों के अनुसार उसको (निर्णयते) दण्ड निर्धारण करने वाले (अस्मै नमः अस्तु) उस रुद्र को नमस्कार है।

    टिप्पणी

    (द्वि०) ‘एकाश्वस्य’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। रुद्रो देवता। १ परातिजागता विराड् जगती, २ अनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदा जगती चतुष्पात्स्वराडुष्णिक्, ४, ५, ७ अनुष्टुभः, ६ आर्षी गायत्री, ८ महाबृहती, ९ आर्षी, १० पुरः कृतिस्त्रिपदा विराट्, ११ पञ्चपदा विराड् जगतीगर्भा शक्करी, १२ भुरिक्, १३, १५, १६ अनुष्टुभौ, १४, १७–१९, २६, २७ तिस्त्रो विराड् गायत्र्यः, २० भुरिग्गायत्री, २१ अनुष्टुप्, २२ विषमपादलक्ष्मा त्रिपदा महाबृहती, २९, २४ जगत्यौ, २५ पञ्चपदा अतिशक्वरी, ३० चतुष्पादुष्णिक् ३१ त्र्यवसाना विपरीतपादलक्ष्मा षट्पदाजगती, ३, १६, २३, २८ इति त्रिष्टुभः। एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Rudra

    Meaning

    Whose natural strike is fever and cough which comes to a person like the neighing of a powerful horse as if it has hit upon the offender in advance: Salutations and homage to this controller of nature’s order.

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    Translation

    Of whom the takman, the kasika, goes as one weapon, like the noise of a stallion horse, to him, leading out in succession, be homage.

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    Translation

    We use to praise the properties of this fire which previously make its way and whose fatal weapon is fever and cough like the neighing of a strong stallion this assails one,

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    Translation

    Homage to God Whose weapon, Cough or Fever, assails one like the neighing of a powerful stallion, Who grants us the fruit of our past acts.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २२−(यस्य) रुद्रस्य (तक्मा) अ० १।२५।१। तकि कृच्छ्रजीवने-मनिन्। कृच्छ्रजीवनकरो ज्वरः (कासिका) कासृ शब्दकुत्सायाम्-घञ्, स्वार्थे कन्, अत इत्वम्। कुत्सितशब्दकारी रोगविशेषः। कासः (हेतिः) वज्रः (एकम्) अपकारिणम् (अश्वस्य) (इव) यथा (वृषणः) बलवतः (क्रन्दः) हेषा शब्दः (एति) प्राप्नोति (अभिपूर्वम्) पूर्वं पूर्वमभिलक्ष्य। यथाक्रमम् (निर्णयते) निः+णीञ् प्रापणे-शतृ। निर्णयं निश्चयं कुर्वते। अन्यद् गतम् ॥˜

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