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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 16
    ऋषिः - अथर्वा देवता - रुद्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रुद्र सूक्त
    78

    नमः॑ सा॒यं नमः॑ प्रा॒तर्नमो॒ रात्र्या॒ नमो॒ दिवा॑। भ॒वाय॑ च श॒र्वाय॑ चो॒भाभ्या॑मकरं॒ नमः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नम॑: । सा॒यम् । नम॑: । प्रा॒त: । नम॑: । रात्र्या॑ । नम॑: । दिवा॑ । भ॒वाय॑ । च॒ । श॒र्वाय॑ । च॒ । उ॒भाभ्या॑म् । अ॒क॒र॒म् । नम॑: ॥२.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमः सायं नमः प्रातर्नमो रात्र्या नमो दिवा। भवाय च शर्वाय चोभाभ्यामकरं नमः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नम: । सायम् । नम: । प्रात: । नम: । रात्र्या । नम: । दिवा । भवाय । च । शर्वाय । च । उभाभ्याम् । अकरम् । नम: ॥२.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 2; मन्त्र » 16
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

    पदार्थ

    (सायम्) सायं काल में (नमः) नमस्कारः (प्रातः) प्रातः काल में (नमः) नमस्कार (रात्र्या) रात्रि में (नमः) नमस्कार (दिवा) दिन में (नमः) नमस्कार। (भवाय) भव [सुख उत्पन्न करनेवाले] (च च) और (शर्वाय) शर्व [दुःख नाश करनेवाले] (उभाभ्याम्) दोनों [गुणों] को (नमः अकरम्) मैंने नमस्कार किया है ॥१६॥

    भावार्थ

    मनुष्य प्रत्येक समय महाशक्तिमान् परमेश्वर का ध्यान करके सदा पराक्रम करता रहे ॥१६॥

    टिप्पणी

    १६−(नमः) नमस्कारः (सायम्) सूर्यास्तसमये (प्रातः) प्रभातसमये (रात्र्या) रात्रिसमये (दिवा) दिनकाले (भवाय) म० ३। सुखोत्पादकाय (च च) समुच्चये (शर्वाय) म० ३। दुःखनाशकाय (उभाभ्याम्) द्वाभ्यां गुणाभ्याम् (अकरम्) अहं कृतवानस्मि। अन्यद् गतम् ॥

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    पदार्थ

    शब्दार्थ = ( सायम् नमः ) = सायंकाल में उस प्रभु को नमस्कार है  ( प्रातः नमः ) = प्रातः काल में नमस्कार है  ( रात्र्या नमः दिवा नम: ) = दिन और रात्रि में बारबार नमस्कार है  ( भवाय ) = सुख करनेवाले  ( च ) = और  ( शर्वाय ) = दुःख के नाश करनेवाले को  ( उभाभ्याम् ) = दोनों हाथ जोड़ कर  ( नमः अकरम् ) = नमस्कार करता हूं । 

    भावार्थ

    भावार्थ = पुरुष सब कामों के आरम्भ और अन्त में उस परमात्मा जगत्पति का ध्यान धरते हुए दोनों हाथ जोड़कर और शिर को झुकाकर सदा प्रणाम करे । जिससे अपना जन्म सफल हो, क्योंकि प्रभु की भक्ति से विमुख होकर विषयों में सदा फँसे रहने से अपना जन्म निष्फल ही है ।

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    विषय

    'भवाय शर्वाय नमः

    पदार्थ

    १. हे (रुद्र) = दु:खों के द्रावक प्रभो ! (आयते ते नमः अस्तु) = हमारे अभिमुख आते हुए आपके लिए नमस्कार हो, (परायते नमः अस्तु) = दूर जाते हुए भी आपके लिए नमस्कार हो। (तिष्ठते ते नमः)  खड़े होते हुए आपके लिए नमस्कार हो, (उत) = और आसीनाय (ते नम:) = बैठे हुए आपके लिए नमस्कार हो। निराकार प्रभु में इन आने-जाने व उठने की क्रियाओं का सम्भव नहीं है, परन्तु पुरुषरूप में प्रभु का ध्यान करता हुआ उपासक प्रभु को इन रूपों में देखता है। २. (सायं नमः) = सायं नमस्कार हो, (प्रातः नमः) = प्रात:काल नमस्कार हो, (रात्र्या नमः) = रात्रि के समय नमस्कार हो, (दिवा नम:) = दिन के समय नमस्कार हो। (भवाय च शर्वाय च उभाभ्याम्) = सृष्टि के उत्पादक व संहारक दोनों रूपोवाले प्रभु के लिए मैं नम: अकरम् नमस्कार करता हूँ।

    भावार्थ

    हम आते-जाते, उठते-बैठते, प्रभु के लिए नमस्कार करें। प्रात: व सायं तथा दिन में व रात में प्रभु को उत्पादक व प्रलयकर्ता के रूप में सोचते हुए नतमस्तक हों।

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    भाषार्थ

    (सायम्) सायं काल की सन्ध्या में (नमः) नमस्कार हो, (प्रातः) प्रातःकाल की सन्ध्या में (नमः) नमस्कार हो, (रात्र्या) रात्रि के समय (नमः) नमस्कार हो, (दिवा) दिन के समय (नमः) नमस्कार हो । (भवाय च शर्वाय च) परमेश्वर के भव अर्थात् उत्पादक तथा शर्व संहारक (उभाभ्याम) दोनों स्वरूपों के प्रति (नमः अकरम्) नमस्कार मैंने किया है।

    टिप्पणी

    [दोनों सन्ध्या कालों में, रात्रि में सोते समय, प्रातः जागरण के समय, परमेश्वर को नमस्कार करना चाहिये। संहारावस्था में, तथा उत्पादकतावस्था में, परमेश्वर को नमस्कार करना चाहिये]।

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    विषय

    रुद्र ईश्वर के भव और शर्व रूपों का वर्णन।

    भावार्थ

    (सायं नमः) परमात्मा को सायंकाल नमस्कार हो। (प्रातः नमः) प्रातःकाल नमस्कार हो। (रात्र्या नमः) रात्रिकाल में नमस्कार हो। (दिवा नमः) दिन को नमस्कार हो। (भवाय च शर्वाय च) भव, सर्व उत्पादक और सर्वसंहारक ईश्वर के (उभाभ्याम्) दोनों स्वरूपों को (नमः करम्) मैं नमस्कार करता हूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। रुद्रो देवता। १ परातिजागता विराड् जगती, २ अनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदा जगती चतुष्पात्स्वराडुष्णिक्, ४, ५, ७ अनुष्टुभः, ६ आर्षी गायत्री, ८ महाबृहती, ९ आर्षी, १० पुरः कृतिस्त्रिपदा विराट्, ११ पञ्चपदा विराड् जगतीगर्भा शक्करी, १२ भुरिक्, १३, १५, १६ अनुष्टुभौ, १४, १७–१९, २६, २७ तिस्त्रो विराड् गायत्र्यः, २० भुरिग्गायत्री, २१ अनुष्टुप्, २२ विषमपादलक्ष्मा त्रिपदा महाबृहती, २९, २४ जगत्यौ, २५ पञ्चपदा अतिशक्वरी, ३० चतुष्पादुष्णिक् ३१ त्र्यवसाना विपरीतपादलक्ष्मा षट्पदाजगती, ३, १६, २३, २८ इति त्रिष्टुभः। एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Rudra

    Meaning

    Salutations in the evening, salutations in the morning, salutations at night, salutations in the day. Salutations to Bhava and Sharva, I offer salutations to both together simultaneously.

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    Translation

    Homage in the evening, homage in the morning, homage by night, homage by day; to Bhava and to Sarva, to both have I paid homage.

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    Translation

    We praise these two constructive and destructive igneous substances in the evening, at down, in night and day.

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    Translation

    Homage to God at evening and at morn, homage at night, homage by day. To God’s powers of Creation and Dissolution, both, have I paid lowly reverence.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १६−(नमः) नमस्कारः (सायम्) सूर्यास्तसमये (प्रातः) प्रभातसमये (रात्र्या) रात्रिसमये (दिवा) दिनकाले (भवाय) म० ३। सुखोत्पादकाय (च च) समुच्चये (शर्वाय) म० ३। दुःखनाशकाय (उभाभ्याम्) द्वाभ्यां गुणाभ्याम् (अकरम्) अहं कृतवानस्मि। अन्यद् गतम् ॥

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    নমঃ সায়ং নমঃ প্রাতর্নমো রাত্র্যা নমো দিবা।

    ভবায় চ শর্বায় চোভাভ্যামকরং নমঃ ।।৭৭।।

    (অথর্ব ১১।২।১৬)

    পদার্থঃ (সায়ম্ নমঃ) সন্ধ্যাকালে সেই পরমাত্মাকে নমস্কার। (প্রাতঃ নমঃ) প্রভাতে নমস্কার। (রাত্র্যা নমঃ দিবা নমঃ) দিন এবং রাত্রিতে বারংবার নমস্কার। (ভবায়) সুখপ্রদায়ক (চ) এবং (শর্বায়) দুঃখের বিনাশক পরমাত্মাকে (উভাভ্যাম্) দুই হাত জোড় করে (নমঃ অকরম্) নমস্কার করি।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ মানব সকল কার্যের শুরুতে এবং শেষে জগৎপতি পরমাত্মার ধ্যান করে দুই হাত জোড় করে এবং মাথা নিচু করে সদা নমস্কার করবে। কারণ পরমাত্মার প্রতি ভক্তি বিমুখ হয়ে বিষয়ে লিপ্ত থাকলে জন্ম বৃথা হয় ।।৭৭।।

     

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