अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 31
ऋषिः - अथर्वा
देवता - रुद्रः
छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदा विपरीतपादलक्ष्मा त्रिष्टुप्
सूक्तम् - रुद्र सूक्त
47
नम॑स्ते घो॒षिणी॑भ्यो॒ नम॑स्ते के॒शिनी॑भ्यः। नमो॒ नम॑स्कृताभ्यो॒ नमः॑ संभुञ्ज॒तीभ्यः॑। नम॑स्ते देव॒ सेना॑भ्यः स्व॒स्ति नो॒ अभ॑यं च नः ॥
स्वर सहित पद पाठनम॑: । ते॒ । घो॒षिणी॑भ्य: । नम॑: । ते॒ । के॒शिनी॑भ्य: । नम॑: । नम॑:ऽकृताभ्य: । नम॑: । स॒म्ऽभु॒ञ्ज॒तीभ्य॑: । नम॑: । ते॒ । दे॒व॒ । सेना॑भ्य: । स्व॒स्ति । न॒: । अभ॑यम् । च॒ । न॒: ॥२.३१॥
स्वर रहित मन्त्र
नमस्ते घोषिणीभ्यो नमस्ते केशिनीभ्यः। नमो नमस्कृताभ्यो नमः संभुञ्जतीभ्यः। नमस्ते देव सेनाभ्यः स्वस्ति नो अभयं च नः ॥
स्वर रहित पद पाठनम: । ते । घोषिणीभ्य: । नम: । ते । केशिनीभ्य: । नम: । नम:ऽकृताभ्य: । नम: । सम्ऽभुञ्जतीभ्य: । नम: । ते । देव । सेनाभ्य: । स्वस्ति । न: । अभयम् । च । न: ॥२.३१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।
पदार्थ
[हे परमेश्वर !] (घोषिणीभ्यः) बड़े कोलाहल करनेवाली [सेनाओं] के पाने को (ते) तुझे (नमः) नमस्कार, (केशिनीभ्यः) प्रकाश करनेवाली [सेनाओं] के पाने को (ते) तुझे (नमः) नमस्कार है। (नमस्कृताभ्यः) नमस्कार की हुई [सेनाओं] के पाने को (नमः) नमस्कार, (संभुञ्जतीभ्यः) मिल कर भोग, [आनन्द] करनेवाली (सेनाभ्यः) सेनाओं के पाने को (नमः) नमस्कार है। (देव) हे विजयी ! [परमेश्वर] (ते) तुझे (नमः) नमस्कार है, (नः) हमारे लिये (स्वस्ति) स्वस्ति [कल्याण] (च) और (नः) हमारे लिये (अभयम्) अभय हो ॥३१॥
भावार्थ
जो मनुष्य परमात्मा की उपासना करके अपना सामर्थ्य बढ़ाते हैं, वे उत्तम, बलवती, सुशिक्षित थलचर, जलचर, नभचर आदि सेनाएँ रख कर प्रजा की रक्षा कर सकते हैं ॥३१॥ इति प्रथमोऽनुवाकः ॥
टिप्पणी
३१−(नमः) प्रणामः (ते) तुभ्यम् (घोषिणीभ्यः) क्रियार्थोपपदस्य च कर्मणि स्थानिनः। पा० २।३।१४। इति चतुर्थी। प्रभूतघोषयुक्ताः सेनाः प्राप्तुम् (केशिनीभ्यः) केशी केशा रश्मयस्तैस्तद्वान् भवति काशनाद्वा प्रकाशनाद्वा-निरु० १२।२५। प्रकाशयुक्ताः सेनाः प्राप्तुम् (नमस्कृताभ्यः) सत्कृताः सेनाः प्राप्तुम् (संभुञ्जतीभ्यः) सह भोगं कुर्वतीः सेनाः प्राप्तुम् (देव) हे विजयिन् परमात्मन् (सेनाभ्यः) सेनाः प्राप्तुम् (स्वस्ति) शोभनां सत्ताम्। कल्याणम् (नः) अस्मभ्यम् (अभयम्) भयराहित्यम् (च) (नः) अस्मभ्यम् ॥
विषय
पवित्र-प्रणाम
पदार्थ
१.हे रुद्र! (ते) = आपसे (घोषिणीभ्यः) = प्रेरित वेदवाणियों की घोषणा करनेवाली (सेनाभ्य:) = [स+इन-स्वामी] सदा आपके साथ रहनेवाली [आपका स्मरण करनेवाली] इन प्रजाओं के लिए (नम:) = हम नमस्कार करते हैं। हे प्रभो! (ते) = आपकी इन (केशिनीभ्य:) = प्रकाश की रश्मियोंवाली [केश A ray of light] प्रजाओं के लिए (नम:) = नतमस्तक होते हैं। (नमस्कृताभ्य:) = आपको प्रणाम करनेवाली इन प्रजाओं के लिए (नमः) = प्रणाम करते हैं। (संभुञ्जतीभ्यः) = मिलकर भोजन करनेवाली व सम्यक् पालन करनेवाली प्रजाओं के लिए (नम:) = प्रणाम है। २. हे देव-प्रकाशमय प्रभो! (ते) = आपकी इन [सेनाभ्यः] सदा आपके स्मरण के साथ गति करनेवाली प्रजाओं के लिए (नमः) = हमारा नमस्कार हो। इसप्रकार (न:) = हमें भी (स्वस्ति) = कल्याण (च) = और (अभयम्) = निर्भयता प्राप्त हो।
भावार्थ
हम उन प्रजाओं को प्रणाम करते हैं जोकि [क] प्रभु-प्रदत्त वेदवाणियों की घोषणा करती हैं। [ख] प्रकाश की रश्मियोंवाली हैं [ग] प्रभु को प्रणाम करनेवाली हैं [घ] सबका सम्यक् पालन करनेवाली व मिलकर खानेवाली हैं तथा [ङ] सदा प्रभुस्मरण के साथ निवासवाली हैं। इसप्रकार हम भी कल्याण व निर्भयता को प्राप्त करते हैं।
सदा प्रभु-स्मरण के साथ रहनेवाले ये व्यक्ति अन्तर्मुखी वृत्तिवाले 'अथर्वा' [अथ अर्वाङ] बनते हैं। यही अगले सूक्त का ऋषि है। ब्रह्म [ज्ञान] ही इनका भोजन होता है। इस ब्रह्मौदन [बार्हस्पत्यौदन] का एक विराट् शरीर के रूप में इस सूक्त में वर्णन है -
भाषार्थ
हे रुद्र ! (ते) तेरी (घोषिणीभ्यः१) नगारे तथा दुन्दुभि का घोष करने वाली सेनाओं को (नमः) हमारा नमस्कार हो (ते) तेरी (केशिनीभ्यः) केशधारी अथवा अग्नि-विद्युत् सूर्य सम प्रतापी सेनाओं को (नमः) हमारा नमस्कार हो। (नमस्कृताभ्यः) पूर्वकाल से चलती आई जो कि हमारे नमस्कारों को प्राप्त करती आई हैं, उन्हें (नमः) हमारा नमस्कार हो, (संभुञ्जतीभ्यः) एकत्रित हो कर सहभोजन करने वाली अथवा स्वराष्ट्र का सम्यक् पालन और द्वेषीराष्ट्र का सम्यक् संहार करने वाली सेनाओं को (नमः) हमारा नमस्कार हो, (देव) हे देव ! (ते) तेरी (सेनाभ्यः) उक्त सब प्रकार की सेनाओं को (नमः) हमारा नमस्कार हो, जिस से (नः) हमारी (स्वस्ति) सु-स्थिति तथा कल्याण (च) और (अभयम्) भय राहित्य हो।
टिप्पणी
[राष्ट्रिय सेनाओं को रुद्ररूप-सेनापति के प्रबन्ध में रखना चाहिये और इन्हें समझना चाहिये कि ये रुद्र परमेश्वर की सेनाएं हैं, और इन का प्रयोग रुद्र-परमेश्वर की इच्छा पूर्ति के लिये, अर्थात् पापियों के संहार और धर्मात्माओं के पालन के लिये करना है। केशिनीभ्यः = सूक्त की ऐकवाक्यता के लिये इस का अर्थ अग्नि विद्युत् सूर्य सम प्रतापी सेनाएं किया है। मन्त्र १८ में "केशिनः" का अर्थ सूर्य हुआ है। निरुक्त में भी "केशिना" के तीन अर्थ दिये हैं, आदित्य, पार्थिवाग्नि तथा विद्युत् (१२।३।२५,२६)। नमस्कार इन सेनाओं के प्रति हुआ है।] [१. अथवा विजय के घोषों को करने वाली सेनाओं के लिये।]
विषय
रुद्र ईश्वर के भव और शर्व रूपों का वर्णन।
भावार्थ
हे (देव) देव राजन् ! (ते सेनाभ्यः नमः) तेरी सेनाओं को नमस्कार है। (ते घोषिणीभ्यः नमः) तेरी घोष = शब्दकारिणी सेनाओं को नमस्कार है। (ते केशिनीभ्यः) तेरी केशों वाली सेनाओं को नमस्कार है। (नमस्कृताभ्यः) अन्न आदि से सत्कृत सेनाओं को भी (नमः) नमस्कार है (सम्-भुंजतीभ्यः नमः) अच्छी प्रकार अन्न का भोग करती एवं राष्ट्र का पालन करती हुई सेनाओं को भी नमस्कार है।
टिप्पणी
(प०) ‘अभयं च न’ इति सायणाभिमतः पाठः।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। रुद्रो देवता। १ परातिजागता विराड् जगती, २ अनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदा जगती चतुष्पात्स्वराडुष्णिक्, ४, ५, ७ अनुष्टुभः, ६ आर्षी गायत्री, ८ महाबृहती, ९ आर्षी, १० पुरः कृतिस्त्रिपदा विराट्, ११ पञ्चपदा विराड् जगतीगर्भा शक्करी, १२ भुरिक्, १३, १५, १६ अनुष्टुभौ, १४, १७–१९, २६, २७ तिस्त्रो विराड् गायत्र्यः, २० भुरिग्गायत्री, २१ अनुष्टुप्, २२ विषमपादलक्ष्मा त्रिपदा महाबृहती, २९, २४ जगत्यौ, २५ पञ्चपदा अतिशक्वरी, ३० चतुष्पादुष्णिक् ३१ त्र्यवसाना विपरीतपादलक्ष्मा षट्पदाजगती, ३, १६, २३, २८ इति त्रिष्टुभः। एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Rudra
Meaning
Divine Rudra, homage to your proclamatory warning forces, homage to your pioneering forces of light, fire and lightning, homage to your forces of the thunderbolt, homage to your consumptive-creative forces, homage, O Lord, to all your evolutionary forces. Pray let there be security, freedom from fear, and all round well being for us.
Translation
Homage to thy noisy ones, homage to thy hairy onés, homage to those to whom homage is paid, homage to the jointly-enjoying - homage, (namely), O god to thine armies: welfare (be) to us, and fearless-ness to us.
Translation
Let us appreciate the the powers of fire which are the cause of sound, let us appreciate the powers of this fire which creates rays and light, let us appreciate the powers of this fire which creates thunderbolt and let us appreciate the powers of this fire which consume all the things. Our praise be due to the powers, qualities and actions of this fire and may there be happiness and fearlessness for us.
Translation
O King, homage to thy loud-shouting hosts and thy long-haired followers. Homage to hosts that are adored, homage to armies that protect the state. Homage to all thy troops. May bliss and fearlessness be ours!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३१−(नमः) प्रणामः (ते) तुभ्यम् (घोषिणीभ्यः) क्रियार्थोपपदस्य च कर्मणि स्थानिनः। पा० २।३।१४। इति चतुर्थी। प्रभूतघोषयुक्ताः सेनाः प्राप्तुम् (केशिनीभ्यः) केशी केशा रश्मयस्तैस्तद्वान् भवति काशनाद्वा प्रकाशनाद्वा-निरु० १२।२५। प्रकाशयुक्ताः सेनाः प्राप्तुम् (नमस्कृताभ्यः) सत्कृताः सेनाः प्राप्तुम् (संभुञ्जतीभ्यः) सह भोगं कुर्वतीः सेनाः प्राप्तुम् (देव) हे विजयिन् परमात्मन् (सेनाभ्यः) सेनाः प्राप्तुम् (स्वस्ति) शोभनां सत्ताम्। कल्याणम् (नः) अस्मभ्यम् (अभयम्) भयराहित्यम् (च) (नः) अस्मभ्यम् ॥
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