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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 2/ मन्त्र 6
    सूक्त - अथर्वा देवता - रुद्रः छन्दः - आर्षी गायत्री सूक्तम् - रुद्र सूक्त

    अङ्गे॑भ्यस्त उ॒दरा॑य जि॒ह्वाया॑ आ॒स्याय ते। द॒द्भ्यो ग॒न्धाय॑ ते॒ नमः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अङ्गे॑भ्य: । ते॒ । उ॒दरा॑य । जि॒ह्वायै॑ । आ॒स्या᳡य । ते॒ । द॒त्ऽभ्य: । ग॒न्धाय॑ । ते॒ । नम॑: ॥२.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अङ्गेभ्यस्त उदराय जिह्वाया आस्याय ते। दद्भ्यो गन्धाय ते नमः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अङ्गेभ्य: । ते । उदराय । जिह्वायै । आस्याय । ते । दत्ऽभ्य: । गन्धाय । ते । नम: ॥२.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 2; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    [हे परमात्मन् !] (ते) तुझे (अङ्गेभ्यः) [हमारे] अङ्गों के हित के लिये, (उदराय) उदर के हित के लिये, (ते) तुझे (जिह्वायै) [हमारी] जिह्वा के हित के लिये और (आस्याय) मुख के हित के लिये (ते) तुझे (दद्भ्यः) [हमारे] दाँतों के हित के लिये और (गन्धाय) गन्ध ग्रहण करने के लिये (नमः) नमस्कार है ॥६॥

    भावार्थ - मनुष्य अपने अङ्गों को यथावत् उपकारी बनाकर परमेश्वर की भक्ति करें ॥६॥

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