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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 2/ मन्त्र 7
    सूक्त - अथर्वा देवता - रुद्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रुद्र सूक्त

    अस्त्रा॒ नील॑शिखण्डेन सहस्रा॒क्षेण॑ वा॒जिना॑। रु॒द्रेणा॑र्धकघा॒तिना॒ तेन॒ मा सम॑रामहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अस्त्रा॑ । नील॑ऽशिखण्डेन । स॒ह॒स्र॒ऽअ॒क्षेण॑ । वा॒जिना॑ । रु॒द्रेण॑ । अ॒र्ध॒क॒ऽघा॒तिना॑ । तेन॑ । मा । सम् । अ॒रा॒म॒ह‍ि॒ ॥२.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अस्त्रा नीलशिखण्डेन सहस्राक्षेण वाजिना। रुद्रेणार्धकघातिना तेन मा समरामहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अस्त्रा । नीलऽशिखण्डेन । सहस्रऽअक्षेण । वाजिना । रुद्रेण । अर्धकऽघातिना । तेन । मा । सम् । अरामह‍ि ॥२.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 2; मन्त्र » 7

    पदार्थ -
    (अस्त्रा) प्रकाश करनेवाले, (नीलशिखण्डेन) नीलों [निधियों] के पहुँचानेवाले, (सहस्राक्षेण) सहस्रों कर्मों में दृष्टिवाले (वाजिना) बलवान् (अर्धकघातिना) हिंसकों के मारनेवाले (तेन) उस (रुद्रेण) रुद्र [दुःख नाशक परमात्मा] के साथ (मा सम् अरामहि) हम समर [युद्ध] न करें ॥७॥

    भावार्थ - मनुष्य स्वयंप्रकाशमान, सर्वहितकारी, महाबली परमात्मा की आज्ञा में रहकर सदा सुखी रहे ॥७॥

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