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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 2/ मन्त्र 4
    सूक्त - अथर्वा देवता - रुद्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रुद्र सूक्त

    पु॒रस्ता॑त्ते॒ नमः॑ कृण्म उत्त॒राद॑ध॒रादु॒त। अ॑भीव॒र्गाद्दि॒वस्पर्य॒न्तरि॑क्षाय ते॒ नमः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पु॒रस्ता॑त् । ते॒ । नम॑: । कृ॒ण्म॒: । उ॒त्त॒रात् । अ॒ध॒रात् । उ॒त । अ॒भि॒ऽव॒र्गात् । दि॒व: । परि॑ । अ॒न्तरि॑क्षाय । ते॒ । नम॑: ॥२.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुरस्तात्ते नमः कृण्म उत्तरादधरादुत। अभीवर्गाद्दिवस्पर्यन्तरिक्षाय ते नमः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पुरस्तात् । ते । नम: । कृण्म: । उत्तरात् । अधरात् । उत । अभिऽवर्गात् । दिव: । परि । अन्तरिक्षाय । ते । नम: ॥२.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 2; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    [हे परमात्मन् !] (ते) तुझे (पुरस्तात्) आगे से, (उत्तरात्) ऊपर से (उत) और (अधरात्) नीचे से (नमः) नमस्कार, (ते) तुझे (दिवः) आकाश के (अभीवर्गात् परि) अवकाश से (अन्तरिक्षाय) अन्तरिक्ष लोक को जानने के लिये (नमः कृण्मः) हम नमस्कार करते हैं ॥४॥

    भावार्थ - मनुष्य परमेश्वर को सर्वत्र व्यापक जानकर विद्या की प्राप्ति से सब दिशाओं और अन्तरिक्ष के पदार्थों का ज्ञान प्राप्त करके अपनी रक्षा करें ॥४॥

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