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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 7/ मन्त्र 21
    सूक्त - अथर्वा देवता - उच्छिष्टः, अध्यात्मम् छन्दः - स्वराडनुष्टुप् सूक्तम् - उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त

    शर्क॑राः॒ सिक॑ता॒ अश्मा॑न॒ ओष॑धयो वी॒रुध॒स्तृणा॑। अ॒भ्राणि॑ वि॒द्युतो॑ व॒र्षमुच्छि॑ष्टे॒ संश्रि॑ता श्रि॒ता ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शर्क॑रा: । सिक॑ता: । अश्मा॑न: । ओष॑धय: । वी॒रुध॑: । तृणा॑ । अ॒भ्राणि॑ । वि॒ऽद्युत॑: । व॒र्षम् । उत्ऽशि॑ष्टे । सम्ऽश्रि॑ता । श्रि॒ता ॥९.२१।


    स्वर रहित मन्त्र

    शर्कराः सिकता अश्मान ओषधयो वीरुधस्तृणा। अभ्राणि विद्युतो वर्षमुच्छिष्टे संश्रिता श्रिता ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शर्करा: । सिकता: । अश्मान: । ओषधय: । वीरुध: । तृणा । अभ्राणि । विऽद्युत: । वर्षम् । उत्ऽशिष्टे । सम्ऽश्रिता । श्रिता ॥९.२१।

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 7; मन्त्र » 21

    पदार्थ -
    (शर्कराः) कंकड़ आदि (अश्मानः) पत्थर, (सिकताः) बालू, (ओषधयः) ओषधें [अन्नादि], (वीरुधः) जड़ी-बूटियाँ, (तृणा) घासें, (अभ्राणि) बादल, (विद्युतः) बिजुलियाँ, (वर्षम्) बरसात, (संश्रिता) [ये सब] परस्पर आश्रित द्रव्य (उच्छिष्टे) शेष [म० १। परमात्मा] में (श्रिता) ठहरे हैं ॥२१॥

    भावार्थ - मनुष्य परमेश्वर की महिमा को विचार कर कंकड़-पत्थर आदि पदार्थों से यथायोग्य कार्य सिद्ध करें ॥२१॥

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