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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 7/ मन्त्र 19
    सूक्त - अथर्वा देवता - उच्छिष्टः, अध्यात्मम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त

    चतु॑र्होतार आ॒प्रिय॑श्चातुर्मा॒स्यानि॑ नी॒विदः॑। उच्छि॑ष्टे य॒ज्ञा होत्राः॑ पशुब॒न्धास्तदिष्ट॑यः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    चतु॑:ऽहोतार: । आ॒प्रिय॑ । चा॒तु॒:ऽमा॒स्यानि॑ । नि॒ऽविद॑: । उत्ऽशि॑ष्टे । य॒ज्ञा: । होत्रा॑: । प॒शु॒ऽब॒न्धा: । तत् । इष्ट॑य: ॥९.१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    चतुर्होतार आप्रियश्चातुर्मास्यानि नीविदः। उच्छिष्टे यज्ञा होत्राः पशुबन्धास्तदिष्टयः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    चतु:ऽहोतार: । आप्रिय । चातु:ऽमास्यानि । निऽविद: । उत्ऽशिष्टे । यज्ञा: । होत्रा: । पशुऽबन्धा: । तत् । इष्टय: ॥९.१९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 7; मन्त्र » 19

    पदार्थ -
    (चतुर्होतारः) चार [ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, चार वर्णों] से ग्राह्य व्यवहार, (चातुर्मास्यानि) चार महीनों में सिद्ध होनेवाले कर्म (आप्रियः) सर्वथा प्रीति उत्पन्न करनेवाली क्रियाएँ और (निविदः) निश्चित विद्याएँ, (यज्ञाः) यज्ञ [श्रेष्ठ व्यवहार], (होत्राः) देने लेने योग्य [वेदवाचाएँ] (पशुबन्धाः) प्राणियों के प्रबन्ध (तत्) तथा (इष्टयः) इष्ट क्रियाएँ (उच्छिष्टे) शेष [म० १।५ परमात्मा] में हैं ॥१९॥

    भावार्थ - सर्वविद्यामय, सर्वाधार परमेश्वर की उपासना से मनुष्य अपने-अपने योग्य कर्मों में प्रवृत्ति करें ॥१९॥

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