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अथर्ववेद > काण्ड 15 > सूक्त 13

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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 13/ मन्त्र 4
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - साम्नी बृहती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    ये॒न्तरि॑क्षे॒पुण्या॑ लो॒कास्ताने॒व तेनाव॑ रुन्द्धे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । अ॒न्तरि॑क्षे । पुण्या॑: । तेन॑ । अव॑ । रु॒न्ध्दे॒ ॥१३.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येन्तरिक्षेपुण्या लोकास्तानेव तेनाव रुन्द्धे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । अन्तरिक्षे । पुण्या: । तेन । अव । रुन्ध्दे ॥१३.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 13; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (अन्तरिक्षे)अन्तरिक्ष में (ये) जो (पुण्याः) पवित्र (लोकाः) लोक [दर्शनीय समाज] हैं (तान्)उनको (एव) निश्चय करके (तेन) उस [अतिथिसत्कार] से वह [गृहस्थ] (अव रुन्द्धे)सुरक्षित करता है ॥४॥

    भावार्थ - गृहस्थ यथावत् सत्कारसे अतिथि को दूसरे दिन ठहराकर उससे अन्तरिक्षविद्या प्राप्त करे ॥३, ४॥

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