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अथर्ववेद > काण्ड 15 > सूक्त 13

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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 13/ मन्त्र 12
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - आसुरी जगती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    कर्षे॑देनं॒ नचै॑नं॒ कर्षे॑त् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कर्षे॑त् । ए॒न॒म् । न । च॒ । ए॒न॒म् । कर्षे॑त् ॥१३.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कर्षेदेनं नचैनं कर्षेत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कर्षेत् । एनम् । न । च । एनम् । कर्षेत् ॥१३.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 13; मन्त्र » 12

    पदार्थ -
    वह [गृहस्थ] (एनम्) उस [झूठे व्रात्य] को (कर्षेत्) तिरस्कार करे, (न) अव (च) निश्चय करके (एनम्) उस [मिथ्याचारी] को (कर्षेत्) तिरस्कार करे ॥१२॥

    भावार्थ - यदि कोई छली-कपटीमिथ्यावादी मनुष्य अपने को सत्यव्रतधारी अतिथि बताकर आजावे, गृहस्थ उस पाखण्डीधूर्त को अवश्य निरादर करके निकाल देवे, और अगले दो मन्त्रों के अनुसार वर्तावकरे ॥११, १२॥

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