अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 13/ मन्त्र 6
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - प्राजापत्या अनुष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
ये दि॒वि पुण्या॑लो॒कास्ताने॒व तेनाव॑ रुन्द्धे॥
स्वर सहित पद पाठये । दि॒वि । पुण्या॑: । लो॒का: । तान् । ए॒व । तेन॑ । अव॑ । रु॒न्ध्दे॒ ॥१३.६॥
स्वर रहित मन्त्र
ये दिवि पुण्यालोकास्तानेव तेनाव रुन्द्धे॥
स्वर रहित पद पाठये । दिवि । पुण्या: । लोका: । तान् । एव । तेन । अव । रुन्ध्दे ॥१३.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 13; मन्त्र » 6
विषय - अतिथि और अनतिथि के विषय का उपदेश।
पदार्थ -
(दिवि) सूर्यलोक में (ये) जो (पुण्याः) पवित्र (लोकाः) लोक [दर्शनीय समाज] हैं, (तान्) उनको (एव)निश्चय करके (तेन) उस [अतिथिसत्कार] से वह [गृहस्थ] (अव रुन्द्धे) सुरक्षितकरता है ॥६॥
भावार्थ - गृहस्थ महामान्य अतिथिसे तीसरी रात्रि ठहरा कर सूर्यमण्डल का ज्ञान अर्थात् उपकारी ज्योतिष विद्या कोप्राप्त करे ॥५, ६॥
टिप्पणी -
५, ६−(दिवि)सूर्यमण्डले। अन्यत् पूर्ववत् स्पष्टं च ॥