Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 1

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 1/ मन्त्र 11
    सूक्त - प्रजापति देवता - साम्नी उष्णिक् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    प्रास्मदेनो॑वहन्तु॒ प्र दुः॒ष्वप्न्यं॑ वहन्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । अ॒स्मत् । एन॑: । व॒ह॒न्तु॒ । प्र । दु॒:ऽस्वप्न्य॑म् । व॒ह॒न्तु॒ ॥१.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रास्मदेनोवहन्तु प्र दुःष्वप्न्यं वहन्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । अस्मत् । एन: । वहन्तु । प्र । दु:ऽस्वप्न्यम् । वहन्तु ॥१.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 1; मन्त्र » 11

    पदार्थ -
    (अस्मत्) हम से (एनः)पाप को (प्र वहन्तु) बाहिर पहुँचावें और (दुःस्वप्न्यम्) दुष्ट स्वप्न मेंउत्पन्न कुविचार को (प्र वहन्तु) बाहिर पहुँचावें ॥११॥

    भावार्थ - मनुष्य विद्वानों केसत्सङ्ग और शिक्षा से जागते-सोते कभी पाप कर्म का विचार न करें ॥१०, ११॥यह दोनोंमन्त्र कुछ भेद से आ चुके हैं-अ० १०।५।२४ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top