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अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 1

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  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 1/ मन्त्र 5
    सूक्त - प्रजापति देवता - द्विपदा साम्नी पङ्क्ति छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    तेन॒तम॒भ्यति॑सृजामो॒ यो॒स्मान्द्वे॑ष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तेन॑ । तम् । अ॒॒भिऽअति॑सृजाम: । य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम् । द्वि॒ष्म: ॥१.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तेनतमभ्यतिसृजामो योस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तेन । तम् । अभिऽअतिसृजाम: । य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम् । द्विष्म: ॥१.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 1; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    (तेन) उसी [पूर्वोक्तकारण] से (तम्) उस [अज्ञानी वैरी] को (अभ्यतिसृजामः) हम सर्वथा नाश करते हैं, (यः) जो [अज्ञानी] (अस्मान्) हम से (द्वेष्टि) द्वेष करता है और (यम्) जिस से (वयम्) हम (द्विष्मः) द्वेष करते हैं ॥५॥

    भावार्थ - जो अधर्मी लोगधर्मात्माओं से अपनी दुष्टता के कारण वैर करें, अथवा धर्मात्मा लोग जिन्हें उनकेदुष्ट व्यवहार के कारण बुरा जानें, विद्वान् लोग उन दुराचारियों को प्रयत्नपूर्वक नाश करें ॥५॥

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