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अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 1

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  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 1/ मन्त्र 10
    सूक्त - प्रजापति देवता - याजुषी त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    अ॑रि॒प्रा आपो॒अप॑ रि॒प्रम॒स्मत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒रि॒प्रा: । आप॑: । अप॑ । रि॒प्रन् । अ॒स्मत् ॥१.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अरिप्रा आपोअप रिप्रमस्मत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अरिप्रा: । आप: । अप । रिप्रन् । अस्मत् ॥१.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 1; मन्त्र » 10

    पदार्थ -
    (अरिप्राः) निर्दोष (आपः) विद्वान् लोग (रिप्रम्) पाप को (अस्मत्) हम से (अप) दूर [पहुँचावें] ॥१०॥

    भावार्थ - मनुष्य विद्वानों केसत्सङ्ग और शिक्षा से जागते-सोते कभी पाप कर्म का विचार न करें ॥१०, ११॥

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