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अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 1

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  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 1/ मन्त्र 9
    सूक्त - प्रजापति देवता - आसुरी पङ्क्ति छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    इन्द्र॑स्य वइन्द्रि॒येणा॒भि षि॑ञ्चेत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑स्य । व॒: । इ॒न्द्रि॒येण॑ । अ॒भि । सि॒ञ्चे॒त् ॥१.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रस्य वइन्द्रियेणाभि षिञ्चेत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रस्य । व: । इन्द्रियेण । अभि । सिञ्चेत् ॥१.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 1; मन्त्र » 9

    पदार्थ -
    वह [परमात्मा] (वः)तुम को (इन्द्रस्य) बड़े ऐश्वर्यवान् पुरुष के [योग्य] (इन्द्रियेण) बड़ेऐश्वर्य से (अभि षिञ्चेत्) अभिषेकयुक्त [राज्य का अधिकारी] करे ॥९॥

    भावार्थ - विद्वान् लोग उसजगदीश्वर को सर्वव्यापक और सर्वबलदायक समझकर बड़े महात्माओं के समान अधिकारी बनकर संसार में बड़े-बड़े काम करें ॥८, ९॥

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