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अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 1

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  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 1/ मन्त्र 4
    सूक्त - प्रजापति देवता - आसुरी गायत्री छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    इ॒दं तमति॑सृजामि॒ तं माभ्यव॑निक्षि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒दम् । तम् । अति॑ । सृ॒जा॒मि॒ । तम् । मा । अ॒भि॒ऽअव॑निक्षि ॥१.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इदं तमतिसृजामि तं माभ्यवनिक्षि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इदम् । तम् । अति । सृजामि । तम् । मा । अभिऽअवनिक्षि ॥१.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 1; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (इदम्) अब (तम्) उस [रोग] को (अति सृजामि) मैं नाश करता हूँ, (तम्) उस [रोग] को (मा अभ्यवनिक्षि)मैं कभी पुष्ट नहीं करूँ ॥४॥

    भावार्थ - मनुष्यों को योग्य हैकि जिन रोगों वा दोषों से आत्मा और शरीर में विकार होवे, उनको ज्ञानपूर्वकहटावें और कभी न बढ़ने दें ॥२-४॥

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