Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 1

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 1/ मन्त्र 2
    सूक्त - प्रजापति देवता - याजुषी त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    रु॒जन्प॑रिरु॒जन्मृ॒णन्प्र॑मृ॒णन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रु॒जन् । प॒रि॒ऽरु॒जन् । मृ॒णन् । प्र॒ऽमृ॒णन् ॥१.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रुजन्परिरुजन्मृणन्प्रमृणन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    रुजन् । परिऽरुजन् । मृणन् । प्रऽमृणन् ॥१.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 1; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (रुजन्) तोड़ता हुआ, (परिरुजन्) सब ओर से तोड़ता हुआ, (मृणन्) मारता हुआ, (प्रमृणन्) कुचलता हुआ ॥२॥

    भावार्थ - मनुष्यों को योग्य हैकि जिन रोगों वा दोषों से आत्मा और शरीर में विकार होवे, उनको ज्ञानपूर्वकहटावें और कभी न बढ़ने दें ॥२-४॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top