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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 22/ मन्त्र 19
    सूक्त - अङ्गिराः देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - आसुर्यनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त

    पृ॑थक्स॒ह॒स्राभ्यां॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पृ॒थ॒क्ऽस॒ह॒स्राभ्या॑म्। स्वाहा॑ ॥२२.१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पृथक्सहस्राभ्यां स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पृथक्ऽसहस्राभ्याम्। स्वाहा ॥२२.१९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 22; मन्त्र » 19

    पदार्थ -
    (पृथक्सहस्राभ्याम्) पृथक्-पृथक् और सहस्रोंवाले दोनों [समूहों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥१९॥

    भावार्थ - मनुष्य पृथक्-पृथक् होकर और सामाजिक समुदाय बनाकर हितकारी कर्म करें करावें ॥१९॥

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