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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 22/ मन्त्र 2
    सूक्त - अङ्गिराः देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - दैवी पङ्क्तिः सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त

    ष॒ष्ठाय॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ष॒ष्ठाय॒। स्वाहा॑ ॥२२.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    षष्ठाय स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    षष्ठाय। स्वाहा ॥२२.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 22; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (षष्ठाय) छठे [पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश पञ्च भूतों की अपेक्षा छठे परमात्मा] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥२॥

    भावार्थ - पृथिव्यादि पञ्चभूतों के नियन्ता परमेश्वर की उपासना सब मनुष्य करें। अथर्व०८।९।४। भी देखो ॥२॥

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