अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 22/ मन्त्र 2
ऋषिः - अङ्गिराः
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - दैवी पङ्क्तिः
सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त
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ष॒ष्ठाय॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठष॒ष्ठाय॒। स्वाहा॑ ॥२२.२॥
स्वर रहित मन्त्र
षष्ठाय स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठषष्ठाय। स्वाहा ॥२२.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
महाशान्ति के लिये उपदेश।
पदार्थ
(षष्ठाय) छठे [पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश पञ्च भूतों की अपेक्षा छठे परमात्मा] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥२॥
भावार्थ
पृथिव्यादि पञ्चभूतों के नियन्ता परमेश्वर की उपासना सब मनुष्य करें। अथर्व०८।९।४। भी देखो ॥२॥
टिप्पणी
२−(षष्ठाय) पृथिव्यादिपञ्चभूतापेक्षया षट्संख्यापूरकाय परमेश्वराय ॥
विषय
योगाङ्गों का अभ्यास आँख
पदार्थ
१. 'अङ्गिरस' वे व्यक्ति हैं जो गतिशील जीवनवाले होते हुए, ज्ञानप्रधान जीवन बिताते हुए [अगि गतौ] अंग-प्रत्यंग को रसमय बनाये रखते हैं-इनकी लोच-लाचक में कमी नहीं आने देते। इन (आङ्गिरसानाम्) = आंगिरसों के (अद्यै:) = प्रथम-प्रारम्भ में होनेवाले(पञ्च अनुवाकैः) = पाँच बातों के साथ सम्बद्ध जपों के हेतु से-'मैं 'यम-नियम' का पालन करूँगा, मैं 'आसन, प्राणायाम' को अपनाऊँगा और इसप्रकार 'प्रत्याहार'-वाला-इन्द्रियों को विषयों से वापस लानेवाला बनूंगा' इन प्रतिदिन दुहराये जानेवाले विचारों के हेतु से (स्वाहा) = उस प्रभु के प्रति अपना अर्पण करता हूँ। प्रभु ही मुझे इन विचारों को स्थूल रूप देने में समर्थ करेंगे। प्रभु-कृपा से ही ये विचार मेरे जीवन में आचार के रूप में परिवर्तित होंगे। २. अब मैं (षष्ठाय) = प्रत्याहार के बाद धारणारूप योग के छठे अंग के लिए प्रभु के प्रति (स्वाहा) = अपना अर्पण करता हूँ। इन्द्रियों को अन्दर ही बाँधने का प्रयत्न करता हूँ। ३. धारणा के बाद (सप्तम् अष्टमाभ्याम्) = सातवें व आठवें-ध्यान व समाधिरूप-योगांगों के लिए (स्वाहा) = आपके प्रति अपने को अर्पित करता हूँ। आपने ही मुझे इन योगांगों में गतिवाला करना है।
भावार्थ
हम योग के प्रथम पाँच अंगों को क्रियान्वित करने के लिए उन्हीं का जप व विचार करें-हमें उनका विस्मरण न हो। अब प्रत्याहार के बाद 'धारणा' के लिए यत्नशील हों। धारणा के बाद 'ध्यान व समाधि' को अपना पाएँ। इन सबके लिए मैं प्रभु के प्रति अपना अर्पण करता हूँ।
भाषार्थ
(षष्ठाय) छठी संख्यावाले मन के स्वास्थ्य के लिए (स्वाहा) आहुतियां हों।
टिप्पणी
[मन्त्र १ में शारीरिक रोगों की निवृत्ति के लिए आहुतियों का विधान किया है। मन्त्र २ में मानसिक स्वास्थ्य के लिए आहुतियों का विधान किया है। “षष्ठ” शब्द द्वारा “मन” का ग्रहण किया है। यथा “इमानि यानि पञ्चेन्द्रियाणि मनः षष्ठानि मे हृदि ब्रह्मणा संशितानि। यैरेव ससृजे घोरं तैरेव शान्तिरस्तु नः” (अथर्व० १९.९.५)।]
विषय
अथर्व सूक्तों का संग्रह।
भावार्थ
(षष्ठाय स्वाहा) छठे अनुवाक से उत्तम शिक्षा ग्रहण करो। (सप्तमाष्टमाभ्यां स्वाहा) सातवें और आठवें अनुवाकों से उत्तम ज्ञान प्राप्त करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अंगिरा ऋषिः। मन्त्रोक्ता देवताः। १ साम्न्युष्णिक् ३, १९ प्राजापत्या गायत्री। ४, ७, ११, १७, दैव्यो जगत्यः। ५, १२, १३ दैव्यस्त्रिष्टुभः, २, ६, १४, १६, दैव्यः पंक्तयः। ८-१० आसुर्यो जगत्यः। १८ आसुर्यो अनुष्टुभः, (१०-२० एकावसानाः) २ चतुष्पदा त्रिष्टुभः। एकविंशत्यृचं समाससूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Translation
Svaha to the sixth (chapter).
Translation
Through the sixth and appreciate it.
Translation
Derive good lessons from the sixth Anuvaka, Kanda 1, suktas 29-35.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(षष्ठाय) पृथिव्यादिपञ्चभूतापेक्षया षट्संख्यापूरकाय परमेश्वराय ॥
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