अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 22/ मन्त्र 18
ऋषिः - अङ्गिराः
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - आसुर्यनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त
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सर्वे॒भ्योऽङ्गि॑रोभ्यो विदग॒णेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठसर्वे॑भ्यः। अङ्गि॑रःऽभ्यः। वि॒द॒ऽग॒णेभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥२२.१८॥
स्वर रहित मन्त्र
सर्वेभ्योऽङ्गिरोभ्यो विदगणेभ्यः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठसर्वेभ्यः। अङ्गिरःऽभ्यः। विदऽगणेभ्यः। स्वाहा ॥२२.१८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
महाशान्ति के लिये उपदेश।
पदार्थ
(सर्वेभ्यः) सब (अङ्गिरोभ्यः) विज्ञानी (विदगणेभ्यः) पण्डित समूहों के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥१८॥
भावार्थ
स्पष्ट है ॥१८॥
टिप्पणी
१८−(सर्वेभ्यः) समस्तेभ्यः (अङ्गिरोभ्यः) विज्ञानिभ्यः (विदगणेभ्यः) विद ज्ञाने-क। पण्डितसमूहेभ्यः।
विषय
ब्रह्मा
पदार्थ
१. (अङ्गिरोभ्य:) = अंग-प्रत्यंग में रसवाले (सर्वेभ्य:) = सब (विदगणेभ्यः) = ज्ञानी-विवेकी पुरुषों के लिए हम (स्वाहा) = प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं । २. तत्वज्ञान के कारण (पृथक् सहस्त्राभ्याम्) = विषयों की आसक्ति से पृथक् हुए-हुए और अतएव [स+हस] आनन्दमय जीवनवाले इन जीवन्मुक्त पुरुषों के लिए हम (स्वाहा) = शुभ शब्द कहते हैं। ३. ब्रह्मणे उत्तम सात्त्विक गति में भी सर्वप्रथम स्थान में स्थित इस 'ब्रह्मा' [वेदज्ञ] पुरुष के लिए (स्वाहा) = हम शुभ शब्द कहते हैं।
भावार्थ
हम तत्त्वज्ञानी, विषयों की आसक्ति से पृथक, आनन्दमय [मन:प्रसादयुक्त] देवाग्रणी ब्रह्मा के लिए प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। वैसा ही बनने का प्रयत्न करते हैं।
भाषार्थ
(विदगणेभ्यः) विद्वानों के गणों अर्थात् (सर्वेभ्यः) सब (अङ्गिरोभ्यः) प्राणविद्या के आचार्यों के संस्मरण में (स्वाहा) आहुतियां हों।
टिप्पणी
[विदगणेभ्यः, विद=विद्+कः कर्तरि। “इगुपधज्ञाप्रीकिरः कः” (अष्टा० ३.१.१३५) अङ्गिरा का अभिप्राय है—प्राण (मन्त्र १ की व्याख्या देखो)। प्राणविद्या के जाननेवालों को प्राणाचार्य कहते हैं। अथर्ववेद में मुख्यरूप में आथर्वण विद्याओं और अङ्गिरस विद्याओं का वर्णन है। इसलिए अथर्ववेद को “अथर्वाङ्गिरसवेद” कहा जाता है। यथा—“यस्मादृचो अपातक्षन् यजुर्यस्मादपाकषन्। सामानि यस्य लोमान्यथर्वाङ्गिरसो मुखं स्कम्भं तं ब्रूहि कतमः स्विदेवः सः॥ [(अथर्व० १०.७.२०)।]
विषय
अथर्व सूक्तों का संग्रह।
भावार्थ
(गणेभ्यः स्वाहा) गणों में पढ़े गये सलिल, शान्ति सूक्त (महागणेभ्यः स्वाहा) महागण, बड़े गणों में पढ़े गये पृथ्वीसूक्त आदि का भी उत्तम रीति से ज्ञान करो। (सर्वेभ्यः अंगिरोभ्यः विदगणेभ्यः स्वाहा) समस्त आंगिरसवेद के जानने हारे विद्वान् पुरुषों द्वारा देखे गये ज्ञानसूक्तों को भी उत्तम रीति से मनन करो। ‘पृथक् सूक्त’ अर्थात् १८वां काण्ड और ‘सहस्र सूक्त’ अर्थात् पुरुष सूक्त इनका भी ज्ञान उत्तम रीति से प्राप्त करो। (ब्रह्मणे स्वाहा) समस्त ब्रह्मविषयक सूक्तों का स्वाध्याय करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अंगिरा ऋषिः। मन्त्रोक्ता देवताः। १ साम्न्युष्णिक् ३, १९ प्राजापत्या गायत्री। ४, ७, ११, १७, दैव्यो जगत्यः। ५, १२, १३ दैव्यस्त्रिष्टुभः, २, ६, १४, १६, दैव्यः पंक्तयः। ८-१० आसुर्यो जगत्यः। १८ आसुर्यो अनुष्टुभः, (१०-२० एकावसानाः) २ चतुष्पदा त्रिष्टुभः। एकविंशत्यृचं समाससूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Chhandas
Meaning
Svaha for assemblies of organised scholars and scientists.
Translation
Sväha to all the Añgirases, known to Ganas.
Translation
Attain the knowledge of all the parts of body and the groups of their knowledge and appreciate them.
Translation
Learn well all the suktas of Atharvaveda, seen by the seers of the Angiras or Atharvaveda.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१८−(सर्वेभ्यः) समस्तेभ्यः (अङ्गिरोभ्यः) विज्ञानिभ्यः (विदगणेभ्यः) विद ज्ञाने-क। पण्डितसमूहेभ्यः।
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