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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 22/ मन्त्र 15
    ऋषिः - अङ्गिराः देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - दैवी पङ्क्तिः सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त
    43

    शि॒खिभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शि॒खिऽभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥२२.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शिखिभ्यः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शिखिऽभ्यः। स्वाहा ॥२२.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 22; मन्त्र » 15
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    महाशान्ति के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (शिखिभ्यः) शिखाधारियों [चोटी-वालों, अथवा चोटी-वाले पर्वतादि के समान ऊँचे ब्रह्मज्ञानियों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥१५॥

    भावार्थ

    स्पष्ट है ॥१५॥

    टिप्पणी

    १५−(शिखिभ्यः) व्रीह्यादिभ्यश्च। पा०५।२।११६। शिखा-इनि। शिखाधारिभ्यः, यद्वा शिखरयुक्तपर्वतादितुल्योन्नतेभ्यो ब्राह्मणेभ्यः ॥

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    व्याख्याः शृङ्गी ऋषि कृष्ण दत्त जी महाराज

    शृङ्गी मुनि कृष्णदत्त जी महाराज-आर्यों का भूषन

    आर्यों के भूषण

    मैंने कल के वाक्यों में कहा था, कि यदि तुम्हें देवता बनना है, तो देवताओं की पूजा करो। आज हम सतोयुग का वर्णन कर रहे थे। सतोयुग क्या था। सतोयुग में आर्य कितने पवित्र थे, जिनकी एक महानता गाई गई है। उनको क्यों आर्य कहा जाता है? क्योंकि उन्होंने अपना जीवन ऊँचा बनाने में, पवित्र बनाने में शिक्षा का और यज्ञोपवीत का इतना आदर किया है, तीनों ऋणों का आदर किया। हमारे तीन प्रकार के ऋण हैं, हमें इनसे उऋण होना है, यही हमारे अन्तःकरण को पवित्र बना सकते हैं। इस शिखा का स्थान, इसलिए उच्च माना गया है, क्योंकि यह पवित्र है और हमारे वैज्ञानिकों ने इसकी व्याख्या इस प्रकार की है, कि शिखा के निचले विभाग में ब्रह्मरन्ध्र है और ब्रह्मरन्ध्र को ऊँचा बनाने के लिए, ब्रह्म अस्ति सुभ्या कृतज्ञः नरोती कश्मश्या। वह ब्रह्मरन्ध्र ही है, जिसको हम पवित्र बना सकते हैं। शिखा हमारे आर्यों का एक विशेष भूषण है। आज हमारा वह भूषण नहीं है, जो हमें नीचा गिरा दे। भूषण वह है, जिस भूषण से हम देवता बन जाएं, जिस भूषण से हम देवता कहलाते हैं। आज उस भूषण को हमें धारण करना है।

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    विषय

    तत्त्वदर्शन

    पदार्थ

    १. संसार के विषयों को तैर जानेवाले ये व्यक्ति ऋषि बनते हैं-तत्त्वद्गष्टा। (ऋषिभ्यः स्वाहा) = इन तत्त्वद्रष्टाओं के लिए हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। २. (शिखिभ्यः स्वाहा) = तत्त्वदर्शन के द्वारा उन्नति की शिखा [चोटी] पर पहुँचनेवाले इन शिखियों के लिए हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। ३. [गण संख्याने] (गणेभ्यः स्वाहा) = संख्यान करनेवाले-प्रत्येक बात के उपाय को सोचनेवाले, इसप्रकार कर्तव्याकर्तव्य का विवेक करनेवाले इन ज्ञानियों के लिए हम शुभ शब्द कहते हैं ४. (महाणेभ्यः स्वाहा) = महान् ज्ञानियों की हम प्रशंसा करते हैं। इनकी प्रशंसा करते हुए इन-जैसा ही बनने के लिए यत्नशील होते हैं।

    भावार्थ

    हम तत्त्वद्रष्टा ऋषियों, तत्त्वदर्शन से उन्नति के शिखर पर पहुँचे हुए व्यक्तियों, उपाय व अपाय को सोचकर कर्तव्याकर्तव्य का विवेक करनेवाले ज्ञानियों व महान् ज्ञानियों का शंसन करते हुए उन-जैसा बनने का प्रयत्न करें।

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    भाषार्थ

    (शिखिभ्यः) शिखाओं अर्थात् ज्वालाओंवाली अग्नियों के प्रति (स्वाहा) घृत तथा हव्यों की आहुतियां हों।

    टिप्पणी

    [शिखा=A flame, यथा “प्रभामहत्या शिखयेव दीपः” (आप्टे)। अतः “शिखिभ्यः” द्वारा सम्भवतः गार्हपत्य, आहवनीय, और दक्षिणा आदि अग्नियां अभिप्रेत हों। इनमें आहुतियों द्वारा गृहशुद्धि, वायुशुद्धि, स्वास्थ्य, तथा रोगविनाश होता है।

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    विषय

    अथर्व सूक्तों का संग्रह।

    भावार्थ

    (ऋषिभ्यः स्वाहा) वेदमन्त्रों के द्रष्टा ऋषियों के उत्तम ज्ञान को प्राप्त करो। (शिखिभ्यः स्वाहा) ब्रह्मज्ञान के प्राप्त करने वाले ब्रह्मचारियों से प्राप्त ज्ञान को प्राप्त करो।

    टिप्पणी

    ‘शिषिभ्यः’ इति क्वचित्।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अंगिरा ऋषिः। मन्त्रोक्ता देवताः। १ साम्न्युष्णिक् ३, १९ प्राजापत्या गायत्री। ४, ७, ११, १७, दैव्यो जगत्यः। ५, १२, १३ दैव्यस्त्रिष्टुभः, २, ६, १४, १६, दैव्यः पंक्तयः। ८-१० आसुर्यो जगत्यः। १८ आसुर्यो अनुष्टुभः, (१०-२० एकावसानाः) २ चतुष्पदा त्रिष्टुभः। एकविंशत्यृचं समाससूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Chhandas

    Meaning

    Svaha for the flaming ones.

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    Translation

    Svaha to the learning pupils

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    Translation

    Attain the knowledge of the fires concerned with their flames and appreciate them.

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    Translation

    Know well the celibates who are studying the Vedas. They should have proper guidance.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १५−(शिखिभ्यः) व्रीह्यादिभ्यश्च। पा०५।२।११६। शिखा-इनि। शिखाधारिभ्यः, यद्वा शिखरयुक्तपर्वतादितुल्योन्नतेभ्यो ब्राह्मणेभ्यः ॥

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