अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 22/ मन्त्र 20
ऋषिः - अङ्गिराः
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - आसुर्यनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त
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ब्र॒ह्मणे॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठब्र॒ह्मणे॑। स्वाहा॑ ॥२२.२०॥
स्वर रहित मन्त्र
ब्रह्मणे स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठब्रह्मणे। स्वाहा ॥२२.२०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
महाशान्ति के लिये उपदेश।
पदार्थ
(ब्रह्मणे) वेदज्ञान के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥२०॥
भावार्थ
मनुष्य वेदविद्या के उपदेश से परस्पर हित करते-कराते रहें ॥२०॥
टिप्पणी
२०−(ब्रह्मणे) वेदज्ञानाय ॥
विषय
ब्रह्मा
पदार्थ
१. (अङ्गिरोभ्य:) = अंग-प्रत्यंग में रसवाले (सर्वेभ्य:) = सब (विदगणेभ्यः) = ज्ञानी-विवेकी पुरुषों के लिए हम (स्वाहा) = प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं । २. तत्वज्ञान के कारण (पृथक् सहस्त्राभ्याम्) = विषयों की आसक्ति से पृथक् हुए-हुए और अतएव [स+हस] आनन्दमय जीवनवाले इन जीवन्मुक्त पुरुषों के लिए हम (स्वाहा) = शुभ शब्द कहते हैं। ३. ब्रह्मणे उत्तम सात्त्विक गति में भी सर्वप्रथम स्थान में स्थित इस 'ब्रह्मा' [वेदज्ञ] पुरुष के लिए (स्वाहा) = हम शुभ शब्द कहते हैं।
भावार्थ
हम तत्त्वज्ञानी, विषयों की आसक्ति से पृथक, आनन्दमय [मन:प्रसादयुक्त] देवाग्रणी ब्रह्मा के लिए प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। वैसा ही बनने का प्रयत्न करते हैं।
भाषार्थ
ब्रह्मवेद अर्थात् अथर्ववेद के लिये प्रशंसायुक्त वाणी हो, और परमेश्वर के प्रसादन के लिये आहुतियां तथा समर्पण हो।
विषय
अथर्व सूक्तों का संग्रह।
भावार्थ
(गणेभ्यः स्वाहा) गणों में पढ़े गये सलिल, शान्ति सूक्त (महागणेभ्यः स्वाहा) महागण, बड़े गणों में पढ़े गये पृथ्वीसूक्त आदि का भी उत्तम रीति से ज्ञान करो। (सर्वेभ्यः अंगिरोभ्यः विदगणेभ्यः स्वाहा) समस्त आंगिरसवेद के जानने हारे विद्वान् पुरुषों द्वारा देखे गये ज्ञानसूक्तों को भी उत्तम रीति से मनन करो। ‘पृथक् सूक्त’ अर्थात् १८वां काण्ड और ‘सहस्र सूक्त’ अर्थात् पुरुष सूक्त इनका भी ज्ञान उत्तम रीति से प्राप्त करो। (ब्रह्मणे स्वाहा) समस्त ब्रह्मविषयक सूक्तों का स्वाध्याय करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अंगिरा ऋषिः। मन्त्रोक्ता देवताः। १ साम्न्युष्णिक् ३, १९ प्राजापत्या गायत्री। ४, ७, ११, १७, दैव्यो जगत्यः। ५, १२, १३ दैव्यस्त्रिष्टुभः, २, ६, १४, १६, दैव्यः पंक्तयः। ८-१० आसुर्यो जगत्यः। १८ आसुर्यो अनुष्टुभः, (१०-२० एकावसानाः) २ चतुष्पदा त्रिष्टुभः। एकविंशत्यृचं समाससूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Chhandas
Meaning
Svaha for the ultimate divine knowledge, the ultimate human order, and the highest and ultimate Divine Order of Reality in existence. Satavalekara’s Note: There are twenty Kandas (Books) in the Atharva-veda. The descriptions of the Anuvakas, Suktas and Ganas including the Rshis are indicated in these twenty verses.
Translation
Svaha to the Divine supreme.
Translation
Attain knowledge or Supreme Being and appreciate.
Translation
Have a thorough grounding in the sukta concerning Brahma the mighty Lord of the Vedas and the universe.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२०−(ब्रह्मणे) वेदज्ञानाय ॥
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