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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 22/ मन्त्र 21
    ऋषिः - अङ्गिराः देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - चतुष्पदा त्रिष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त
    67

    ब्रह्म॑ज्येष्ठा॒ सम्भृ॑ता वी॒र्याणि॒ ब्रह्माग्रे॒ ज्येष्ठं॒ दिव॒मा त॑तान। भू॒तानां॑ ब्र॒ह्मा प्र॑थ॒मोत ज॑ज्ञे॒ तेना॑र्हति॒ ब्रह्म॑णा॒ स्पर्धि॑तुं॒ कः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ब्रह्म॑ऽज्येष्ठा। सम्ऽभृ॑ता। वी॒र्या᳡णि। ब्रह्म॑। अग्रे॑। ज्येष्ठ॑म्। दिव॑म्। आ। त॒ता॒न। भू॒ताना॑म्। ब्र॒ह्मा। प्र॒थ॒मः। उ॒त। ज॒ज्ञे॒। तेन॑। अ॒र्ह॒ति॒। ब्रह्म॑णा। स्पर्धि॑तुम्। कः ॥२२.२१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ब्रह्मज्येष्ठा सम्भृता वीर्याणि ब्रह्माग्रे ज्येष्ठं दिवमा ततान। भूतानां ब्रह्मा प्रथमोत जज्ञे तेनार्हति ब्रह्मणा स्पर्धितुं कः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ब्रह्मऽज्येष्ठा। सम्ऽभृता। वीर्याणि। ब्रह्म। अग्रे। ज्येष्ठम्। दिवम्। आ। ततान। भूतानाम्। ब्रह्मा। प्रथमः। उत। जज्ञे। तेन। अर्हति। ब्रह्मणा। स्पर्धितुम्। कः ॥२२.२१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 22; मन्त्र » 21
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    महाशान्ति के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (संभृता) यथावत् भरे हुए (वीर्याणि) वीर कर्म (ब्रह्मज्येष्ठा) ब्रह्म [परमात्मा] को ज्येष्ठ [महाप्रधान रखने-वाले] हैं, (ज्येष्ठम्) ज्येष्ठ [सर्वप्रधान] (ब्रह्म) ब्रह्म [परमात्मा] ने (अग्रे) पहिले (दिवम्) ज्ञान को (आ) सब ओर (ततान) फैलाया है। (उत) और (ब्रह्मा) वह ब्रह्मा [सबसे बड़ा, सर्वजनक परमात्मा] (भूतानाम्) प्राणियों में (प्रथमः) पहिला (जज्ञे) प्रकट हुआ है, (तेन) इसलिये (ब्रह्मणा) ब्रह्मा [महान्-परमात्मा] के साथ (कः) कौन (स्पर्धितुम्) झगड़ने को (अर्हति) समर्थ है? ॥२१॥

    भावार्थ

    संसार में सब प्रकार के पराक्रम और बल सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर के सामर्थ्य से हैं, उस महावृद्ध, सर्वजनक से तुल्य वा अधिक कोई भी नहीं है। सब मनुष्य उसकी उपासना करके सुख प्राप्त करें ॥२१॥

    टिप्पणी

    मन्त्र २०, २१ आगे हैं-अथर्व० १९।२३।२९,३० ॥२१−(ब्रह्मज्येष्ठा) ब्रह्म परमात्मा ज्येष्ठो महाप्रधानो येषां तानि (संभृता) सम्यक् पोषितानि (वीर्याणि) वीरकर्माणि (ब्रह्म) प्रवृद्धः परमात्मा (अग्रे) सृष्टिपूर्वम् (ज्येष्ठम्) सर्वप्रधानम् (दिवम्) दिवु गतौ-क। ज्ञानम् (आ) समन्तात् (ततान) विस्तारितवान् (भूतानाम्) प्राणिनां मध्ये (ब्रह्मा) सर्वेभ्यः प्रवृद्धः परमात्मा (प्रथमः) आद्यः (उत) अपि (प्रथमोत) रोर्यत्वे तस्य लोपे पुनः सन्धिश्छान्दसः संहितायाम् (जज्ञे) प्रादुर्बभूव (तेन) कारणेन (अर्हति) समर्थो भवति (ब्रह्मणा) परमात्मना सह (स्पर्धितुम्) स्पर्धामभिभवेच्छां कर्त्तुम् (कः) कः पुरुषः। न कोऽपीत्यर्थः ॥

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    विषय

    अस्पर्धनीय [ब्रह्मा]

    पदार्थ

    १. पिछले मन्त्र में 'ब्रह्मा' का उल्लेख हुआ था। उस ब्रह्मा के लिए कहते हैं कि इस ब्रह्मा में (ब्रह्माज्येष्ठा) = ज्ञान की जिनमें सर्वप्रशस्त है, वे (वीर्याणि) = शक्तियाँ (संभृता) = सम्यक् भृत [पोषित] हुई हैं। इसने शारीर व मानस शक्तियों के साथ इस सर्वोपरि ज्ञानशक्ति का अपने में संभरण किया है। (अग्रे) = इस सृष्टि के प्रारम्भ में (ब्रह्मा) = इस सर्वोत्तम सात्त्विकानणी पुरुष ने (ज्येष्ठं दिवम् =) सर्वश्रेष्ठ वेदमय ज्योति को 'अग्नि, वायु, आदित्य व अंगिरा' से प्राप्त करके (आततान) = चारों ओर फैलाया है। २. (उत) = और (भूतानाम्) = इन प्राणियों में यह (ब्रह्मा) = चतुर्वेदवेत्ता पुरुष प्रथम जज्ञे सर्वप्रथम हुआ है। उन्नति के सोपान में यह सबसे ऊपर है। तेन (ब्रह्मणा) = उस ब्रह्मा से (क:) = कौन (स्पर्धितम् अर्हति) = स्पर्धा के योग्य है? इस ब्रह्मा का मुकाबला कोई नहीं कर सकता। इसका जीवन पवित्रतम है।

    भावार्थ

    सृष्टि के प्रारम्भ में उत्पन्न होनेवाला [प्रभु का मानस पुत्र] यह ब्रह्मज्ञान प्रधान सब शक्तियों का अपने में संभरण करता है। इस ज्ञान को यह चारों ओर फैलाता है। इसका जीवन अद्वितीय है। - यह 'ब्रह्मा' अथर्वा बनता है-न डांवाडोल होनेवाला। अथर्वा ही अगले सूक्त का ऋषि -

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    भाषार्थ

    संसार में जो (वीर्याणि) शक्तियां (संभृता=संभृतानि) एकत्र हुई हैं, उनमें (ब्रह्मज्येष्ठा= ब्रह्मज्येठानि) ब्रह्मशक्ति ज्येष्ठ शक्ति है। (अग्रे) सृष्टि के प्रारम्भ में (ज्येष्ठं ब्रह्म) सब से ज्येष्ठ ब्रह्म ने (दिवम्) द्युलोक को (आ ततान) ताना था। (उत) तथा (भूतानाम्) भूतभौतिक जगत् की (प्रथमा) प्रथम शक्तिरूप (ब्रह्म) ब्रह्म (आ जज्ञे) शक्तिरूप में प्रकट हुआ था। (कः) कौन (तेन) उस (ब्रह्मणा) ब्रह्म के साथ (स्पर्धितुम्) स्पर्धा करने के (अर्हति) योग्य हो सकता है? [प्रथमोत=प्रथमा उत। ब्रह्मा=ब्रह्म+आ (जज्ञे)।]

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    विषय

    अथर्व सूक्तों का संग्रह।

    भावार्थ

    (ब्रह्मज्येष्ठा) जिन समस्त वीर्यों या बलों में ब्रह्म ही सब से अधिक प्रबल और उत्कृष्ट बल है वे (वीर्याणि) समस्त वीर्य, बल से साधने योग्य कार्य (संभृता) उत्तम रीति से धारण करने चाहियें। (ज्येष्ठम्) उस सर्व से, उत्तम (ब्रह्म) ब्रह्म, उस महान् ब्रह्म शक्ति ने ही (अग्रे) सृष्टि के प्रारम्भ में (दिवम्) द्यौ, आकाश को या सूर्य को (आततान) विस्तृत किया था, रचा था। अथवा (ब्रह्म=ब्रह्मणि, ज्येष्ठानि वीर्याणि संभृतानि) ब्रह्म में ही समस्त वीर्य=बल एकत्र विद्यमान हैं। ब्रह्म ने ही (दिवम्) तेजोमय् नक्षत्रों से युक्त आकाश या द्यौलोक अर्थात् तेजोमय सूर्यों से पूर्ण संसार और संसार के समस्त सूर्यों और नक्षत्रों को रचा। (भूतानां) समस्त उत्पन्न होने वाले प्राणियों और भुवनों में से (ब्रह्मा प्रथम उत्त) ब्रह्मा, वेदज्ञान या ब्रह्मज्ञान से युक्त पुरुष ही (जज्ञे) उत्पन्न हुआ। अर्थात् प्रथम आदि में जो लोग उत्पन्न हुए सबसे प्रथम ब्रह्मज्ञानी ऋषिगण ही हुए। (तेन) उससे (ब्रहाणा) उस महान् ब्रह्म से (कः स्पर्धितुम् अर्हति) कौन मुकाबला कर सकता है। उसकी बराबरी कौन कर सकता है।

    टिप्पणी

    (तृ०) ‘प्रथमा उत इति पदपाठः’ क्वचित्। ‘प्रथमोह’ इति ह्विटनिकामितः। ‘प्रथमोऽथ’ इति क्वचित्। ब्रह्मज्येष्ठा वीर्या सम्भृतानि (तृ०) ‘मृत्तस्य ब्रह्म प्रथमोत जज्ञे’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अंगिरा ऋषिः। मन्त्रोक्ता देवताः। १ साम्न्युष्णिक् ३, १९ प्राजापत्या गायत्री। ४, ७, ११, १७, दैव्यो जगत्यः। ५, १२, १३ दैव्यस्त्रिष्टुभः, २, ६, १४, १६, दैव्यः पंक्तयः। ८-१० आसुर्यो जगत्यः। १८ आसुर्यो अनुष्टुभः, (१०-२० एकावसानाः) २ चतुष्पदा त्रिष्टुभः। एकविंशत्यृचं समाससूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Chhandas

    Meaning

    United and organised are all greats and grandeurs of matter, energy and mind of Prakrti, Jiva and Brahma, of which the first and highest is Brahma. Brahma first self-manifested and creatively evolved the light of heavenly awareness and divine will. Of the first evolved forms of being, Brahma was the first that manifested himself and emerged as the creator. Who can claim to be a rival of Brahma? None.

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    Translation

    All the valours collected are surpassed by the Divine supreme spread out the sky. The Divine supreme existed before the beings were born. So who can dare to compete with that Divine supreme.

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    Translation

    The powers accumulated in the world are surmounted by the Brahman, the Supreme Being, the All-surpassing Supreme Being in the beginning of creation spread the luminous space and Brahma, the Supreme Being is known first amongst all the elements and creatures. Therefore who can stand as revival of Him, the Supreme Being, i. e None,

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    Translation

    Brahma, the Almighty is the foremost amongst the powers that are borne in this world. He extended the huge constellations in the very beginning of the creation. He is the 1st among the created things. What is worthy to compete with that very Brahma, the mighty one?

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र २०, २१ आगे हैं-अथर्व० १९।२३।२९,३० ॥२१−(ब्रह्मज्येष्ठा) ब्रह्म परमात्मा ज्येष्ठो महाप्रधानो येषां तानि (संभृता) सम्यक् पोषितानि (वीर्याणि) वीरकर्माणि (ब्रह्म) प्रवृद्धः परमात्मा (अग्रे) सृष्टिपूर्वम् (ज्येष्ठम्) सर्वप्रधानम् (दिवम्) दिवु गतौ-क। ज्ञानम् (आ) समन्तात् (ततान) विस्तारितवान् (भूतानाम्) प्राणिनां मध्ये (ब्रह्मा) सर्वेभ्यः प्रवृद्धः परमात्मा (प्रथमः) आद्यः (उत) अपि (प्रथमोत) रोर्यत्वे तस्य लोपे पुनः सन्धिश्छान्दसः संहितायाम् (जज्ञे) प्रादुर्बभूव (तेन) कारणेन (अर्हति) समर्थो भवति (ब्रह्मणा) परमात्मना सह (स्पर्धितुम्) स्पर्धामभिभवेच्छां कर्त्तुम् (कः) कः पुरुषः। न कोऽपीत्यर्थः ॥

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