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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 22/ मन्त्र 14
    ऋषिः - अङ्गिराः देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - दैवी पङ्क्तिः सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त
    46

    ऋ॒षिभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋ॒षिऽभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥२२.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋषिभ्यः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऋषिऽभ्यः। स्वाहा ॥२२.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 22; मन्त्र » 14
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    महाशान्ति के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (ऋषिभ्यः) ऋषियों [वेदव्याख्याता मुनियों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥१४॥

    भावार्थ

    स्पष्ट है ॥१४॥

    टिप्पणी

    १४−(ऋषिभ्यः) वेदार्थदर्शकेभ्यो मुनिभ्यः ॥

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    विषय

    तत्त्वदर्शन

    पदार्थ

    १. संसार के विषयों को तैर जानेवाले ये व्यक्ति ऋषि बनते हैं-तत्त्वद्गष्टा। (ऋषिभ्यः स्वाहा) = इन तत्त्वद्रष्टाओं के लिए हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। २. (शिखिभ्यः स्वाहा) = तत्त्वदर्शन के द्वारा उन्नति की शिखा [चोटी] पर पहुँचनेवाले इन शिखियों के लिए हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। ३. [गण संख्याने] (गणेभ्यः स्वाहा) = संख्यान करनेवाले-प्रत्येक बात के उपाय को सोचनेवाले, इसप्रकार कर्तव्याकर्तव्य का विवेक करनेवाले इन ज्ञानियों के लिए हम शुभ शब्द कहते हैं ४. (महाणेभ्यः स्वाहा) = महान् ज्ञानियों की हम प्रशंसा करते हैं। इनकी प्रशंसा करते हुए इन-जैसा ही बनने के लिए यत्नशील होते हैं।

    भावार्थ

    हम तत्त्वद्रष्टा ऋषियों, तत्त्वदर्शन से उन्नति के शिखर पर पहुँचे हुए व्यक्तियों, उपाय व अपाय को सोचकर कर्तव्याकर्तव्य का विवेक करनेवाले ज्ञानियों व महान् ज्ञानियों का शंसन करते हुए उन-जैसा बनने का प्रयत्न करें।

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    भाषार्थ

    (ऋषिभ्यः) शरीरस्थ ५ ज्ञानेन्द्रियों, मन और बुद्धि इन सात ऋषियों के स्वास्थ्य के लिए (स्वाहा) आहुतियां हों।

    टिप्पणी

    [ऋषिभ्यः= “सप्त ऋषयः प्रतिहिताः शरीरे” (यजुः० ३४.५५), तथा “शरीरे षडिन्द्रियाणि विद्या सप्तमी आत्मनि” (निरु० १२.४.३७)।]

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    विषय

    अथर्व सूक्तों का संग्रह।

    भावार्थ

    (ऋषिभ्यः स्वाहा) वेदमन्त्रों के द्रष्टा ऋषियों के उत्तम ज्ञान को प्राप्त करो। (शिखिभ्यः स्वाहा) ब्रह्मज्ञान के प्राप्त करने वाले ब्रह्मचारियों से प्राप्त ज्ञान को प्राप्त करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अंगिरा ऋषिः। मन्त्रोक्ता देवताः। १ साम्न्युष्णिक् ३, १९ प्राजापत्या गायत्री। ४, ७, ११, १७, दैव्यो जगत्यः। ५, १२, १३ दैव्यस्त्रिष्टुभः, २, ६, १४, १६, दैव्यः पंक्तयः। ८-१० आसुर्यो जगत्यः। १८ आसुर्यो अनुष्टुभः, (१०-२० एकावसानाः) २ चतुष्पदा त्रिष्टुभः। एकविंशत्यृचं समाससूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Chhandas

    Meaning

    Svaha for the Rshis, divine visionaries (and five senses, mind and intellect).

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    Translation

    Attain the knowledge of the Rishis, the elements of primitive state of cosmos and appreciate them.

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    Translation

    Know well the seers of the Vedas.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १४−(ऋषिभ्यः) वेदार्थदर्शकेभ्यो मुनिभ्यः ॥

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