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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 22/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अङ्गिराः देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - दैवी पङ्क्तिः सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त
    35

    क्षु॒द्रेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क्षु॒द्रेभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥२२.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    क्षुद्रेभ्यः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क्षुद्रेभ्यः। स्वाहा ॥२२.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 22; मन्त्र » 6
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    हिन्दी (3)

    विषय

    महाशान्ति के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (क्षुद्रेभ्यः) सूक्ष्म गुणों के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥६॥ यह मन्त्र आगे है-अथर्व०१९।२३।२१॥

    भावार्थ

    स्पष्ट है ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(क्षुद्रेभ्यः) स्फायितञ्चिवञ्चिशकिक्षिषिक्षुदि०। उ०२।१३। क्षुदिर् संपेषणे-रक्। सूक्ष्मगुणेभ्यः ॥

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    विषय

    योगी का जीवन

    पदार्थ

    १. योगांगों का अभ्यास करनेवाले ये व्यक्ति नील-कृष्णा-निर्लेप [नीरंग-जिनपर दुनिया का रंग नहीं चढ़ गया] बनते हैं तथा उन्नति के शिखर पर पहुँचते हैं, इनके जीवन में (न-ख) = छिद्र [दोष] नहीं रहते। इन (नीलनखेभ्य:) = निर्लेप, निश्छिद्र जीवनवाले पुरुषों के लिए हम [सु आह] (स्वाहा) = शुभ शब्दों का उच्चारण करते हैं। अपने जीवनों को भी उन-जैसा बनाने का प्रयत्न करते हैं। ३. इन (हरितेभ्यः) = इन्द्रियों का विषयों से प्रत्याहार करनेवालों के लिए (स्वाहा) = हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं और इन-जैसा बनने के लिए यत्नशील होते हैं। ३. (क्षुद्रेभ्यः) = [क्षुदिर संपेषणे]-शत्रुओं का संपेषण कर डालनेवाले इन व्यक्तियों के लिए हम (स्वाहा) = [स्व हा] अपना अर्पण करते हैं। उनके शिष्य बनकर उन-जैसा बनने के लिए यल करते हैं। ४. (पर्यायिकेभ्यः) = [पर्याय-regular order] इन व्यवस्थित जीवनवालों के लिए (स्वाहा) = प्रशंसात्मक शब्द कहते हुए हम भी उनके जीवनों को अपना जीवन बनाते हैं। उनकी भाँति ही जीवन की प्रत्येक क्रिया को व्यवस्थित करते हैं।

    भावार्थ

    योगांगों के अभ्यास से हम निर्लेप व निश्छिद्र जीवनवाले हों। इन्द्रियों का विषयों से प्रत्याहार करें। काम, क्रोध, लोभ आदि शत्रुओं का संपेषण कर डालें। हमारे जीवन की प्रत्येक क्रिया व्यवस्थित [regular order में] हो।

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    भाषार्थ

    (क्षुद्रेभ्यः) क्षुद्र अर्थात् अल्पकाय रोगजन्तुओं अर्थात् कीटाणुओं के निवारणार्थ (स्वाहा) आहुतियां हों।

    टिप्पणी

    [रोग-क्रिमि दो प्रकार के हैं—दृष्ट तथा अदृष्ट (अथर्व० २.३१.२)। ये क्रिमी आन्तों, सिर, छाती आदि स्थानों में रहकर रोग पैदा करते हैं। (अथर्व० २.३१.४-५) क्षुद्र शब्द द्वारा अदृष्ट अर्थात् सूक्ष्म कीटाणुओं का वर्णन किया गया है। क्षुद्र कीटाणुओं की विनाशक ओषधियों की आहुतियों से उत्पन्न यज्ञिय धूम्र इन का विनाश करता है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Chhandas

    Meaning

    Svaha for the subtleties and microscopicals.

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    Translation

    Svahà to small (chapters or hymns).

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    Translation

    Acquire knowledge of rare Clements and appreciate them,

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    Translation

    Have a thorough knowledge of the Kshudra sukta i.e., Skambha sukta giving complete version of the invisible God.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(क्षुद्रेभ्यः) स्फायितञ्चिवञ्चिशकिक्षिषिक्षुदि०। उ०२।१३। क्षुदिर् संपेषणे-रक्। सूक्ष्मगुणेभ्यः ॥

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