Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 14
    सूक्त - अथर्वा देवता - कश्यपः, समस्तार्षच्छन्दांसि, ऋषिगणः छन्दः - चतुष्पदातिजगती सूक्तम् - विराट् सूक्त

    अ॒ग्नीषोमा॑वदधु॒र्या तु॒रीयासी॑द्य॒ज्ञस्य॑ प॒क्षावृष॑यः क॒ल्पय॑न्तः। गा॑य॒त्रीं त्रि॒ष्टुभं॒ जग॑तीमनु॒ष्टुभं॑ बृहद॒र्कीं यज॑मानाय॒ स्वरा॒भर॑न्तीम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्नीषोमौ॑ । अ॒द॒धु॒: । या । तु॒रीया॑ । आसी॑त् । य॒ज्ञस्य॑ । प॒क्षौ । ऋष॑य: । क॒ल्पय॑न्त: । गा॒य॒त्रीम् । त्रि॒ऽस्तुभ॑म् । जग॑तीम् । अ॒नु॒ऽस्तुभ॑म् । बृ॒ह॒त्ऽअ॒र्कीम् । यज॑मानाय । स्व᳡: । आ॒ऽभर॑न्तीम्॥९.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्नीषोमावदधुर्या तुरीयासीद्यज्ञस्य पक्षावृषयः कल्पयन्तः। गायत्रीं त्रिष्टुभं जगतीमनुष्टुभं बृहदर्कीं यजमानाय स्वराभरन्तीम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्नीषोमौ । अदधु: । या । तुरीया । आसीत् । यज्ञस्य । पक्षौ । ऋषय: । कल्पयन्त: । गायत्रीम् । त्रिऽस्तुभम् । जगतीम् । अनुऽस्तुभम् । बृहत्ऽअर्कीम् । यजमानाय । स्व: । आऽभरन्तीम्॥९.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 14

    पदार्थ -
    (यज्ञस्य) यज्ञ [रसों के संयोग-वियोग] के (पक्षौ) ग्रहण करनेवाले (अग्नीषोमौ) सूर्य और चन्द्रमा [के समान] (ऋषयः) ऋषि लोगों ने, (या) जो [वेदवाणी] (तुरीया) वेगवती वा ब्रह्म की [जो सत्व, रज और तम तीन गुणों से परे चौथा है] (आसीत्) थी, (यजमानाय) यजमान के लिये (स्वः) मोक्ष सुख (आभरन्तीम्) भर देनेवाली [उस] (गायत्रीम्) गाने योग्य, (त्रिष्टुभम्) [कर्म, उपासना और ज्ञान इन] तीन से पूजी गयी, (जगतीम्) प्राप्तियोग्य, (बृहदर्कीम्) बड़े सत्कारवाली (अनुष्टुभम्) निरन्तर स्तुतियोग्य [विराट् वा वेदवाणी] को (कल्पयन्तः) समर्थन करते हुए (अदधुः) धारण किया है ॥१४॥

    भावार्थ - जिस प्रकार ऋषि महात्माओं ने यथावत् नियम पर चलकर वेदवाणी को ग्रहण किया है, उसी प्रकार सब मनुष्य वेदवाणी को स्वीकार कर के मोक्षपद प्राप्त करें ॥१४॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top