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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 18
    सूक्त - अथर्वा देवता - कश्यपः, समस्तार्षच्छन्दांसि, ऋषिगणः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - विराट् सूक्त

    स॒प्त होमाः॑ स॒मिधो॑ ह स॒प्त मधू॑नि स॒प्तर्तवो॑ ह स॒प्त। स॒प्ताज्या॑नि॒ परि॑ भू॒तमा॑य॒न्ताः स॑प्तगृ॒ध्रा इति॑ शुश्रुमा व॒यम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒प्त । होमा॑: । स॒म्ऽइध॑: । ह॒ । स॒प्त । मधू॑नि । स॒प्त । ऋ॒तव॑: । ह॒ । स॒प्त । स॒प्त । आज्या॑नि । परि॑ । भू॒तम् । आ॒य॒न् । ता: । स॒प्त॒ऽगृ॒ध्रा: । इति॑ । शु॒श्रु॒म॒ । व॒यम् ॥९.१८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सप्त होमाः समिधो ह सप्त मधूनि सप्तर्तवो ह सप्त। सप्ताज्यानि परि भूतमायन्ताः सप्तगृध्रा इति शुश्रुमा वयम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सप्त । होमा: । सम्ऽइध: । ह । सप्त । मधूनि । सप्त । ऋतव: । ह । सप्त । सप्त । आज्यानि । परि । भूतम् । आयन् । ता: । सप्तऽगृध्रा: । इति । शुश्रुम । वयम् ॥९.१८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 18

    पदार्थ -
    (सप्त) सात (होमाः) [विषयों की] ग्रहण करनेवाली [इन्द्रियाँ, त्वचा, नेत्र, कान, जिह्वा, नाक, मन और बुद्धि] (सप्त) सात (ह) ही (समिधः) विषय प्रकाश करनेवाली [इन्द्रियों की सूक्ष्म शक्तियाँ], (सप्त) सात (मधूनि) ज्ञान [विषय] और (सप्त) सात (ह) ही (ऋतवः) गति [प्रवृत्ति] हैं। [वे ही] (सप्त) सात (आज्यानि) विषयों के प्रकाशसाधन (भूतम् परि) प्रत्येक प्राणी के साथ (ताः) उन [प्रसिद्ध] (सप्तगृध्राः) सात इन्द्रियों से उत्पन्न हुई वासनाओं को (आयन्) प्राप्त हुए हैं, (इति) यह (वयम्) हम ने (शुश्रुम्) सुना है ॥१८॥

    भावार्थ - विद्वानों ने वेदादि शास्त्रों से निश्चय किया है कि सात इन्द्रियों और उनकी सूक्ष्म शक्तियों द्वारा विषय का ज्ञान प्राप्त करके प्राणी कामों में प्रवृत्ति करता है ॥१८॥

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