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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 16
    सूक्त - अथर्वा देवता - कश्यपः, समस्तार्षच्छन्दांसि, ऋषिगणः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - विराट् सूक्त

    षड्जाता भू॒ता प्र॑थम॒जर्तस्य॒ षडु॒ सामा॑नि षड॒हं व॑हन्ति। ष॑ड्यो॒गं सीर॒मनु॒ साम॑साम॒ षडा॑हु॒र्द्यावा॑पृथि॒वीः षडु॒र्वीः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    षट् । जा॒ता । भू॒ता । प्र॒थ॒म॒ऽजा । ऋ॒तस्य॑ । षट् । ऊं॒ इति॑ । सामा॑नि । ष॒ट्ऽअ॒हम् । व॒ह॒न्ति॒ । ष॒ट्ऽयो॒गम् । सीर॑म् । अनु॑ । साम॑ऽसाम । षट् । आ॒हु॒: । द्यावा॑पृथि॒वी: । षट् । उ॒र्वी: ॥९.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    षड्जाता भूता प्रथमजर्तस्य षडु सामानि षडहं वहन्ति। षड्योगं सीरमनु सामसाम षडाहुर्द्यावापृथिवीः षडुर्वीः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    षट् । जाता । भूता । प्रथमऽजा । ऋतस्य । षट् । ऊं इति । सामानि । षट्ऽअहम् । वहन्ति । षट्ऽयोगम् । सीरम् । अनु । सामऽसाम । षट् । आहु: । द्यावापृथिवी: । षट् । उर्वी: ॥९.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 16

    पदार्थ -
    (ऋतस्य) सत्यस्वरूप परमेश्वर के [सामर्थ्य, से] (प्रथमजा) विस्तार के साथ [वा पहिले] उत्पन्न (षट् भूता) छह इन्द्रियाँ [स्थूल त्वचा, नेत्र, कान, जिह्वा, नाक और मन] (जाता) प्रकट हुईं, (षट् उ) छह ही (सामानि) कर्म समाप्त करनेवाली [इन्द्रियाँ] (षडहम्) छह [इन्द्रियों] से व्याप्तिवाले [देह] को (वहन्ति) ले चलती हैं। (षड्योगम्) छह [स्पर्श, दृष्टि, श्रुति, रसना, घ्राण और मनन सूक्ष्म शक्तियों] से संयोगवाले (सीरम् अनु) बन्धन के साथ-साथ (सामसाम) प्रत्येक कर्म समाप्त करनेवाली [स्थूल इन्द्रिय है], [लोग] (षट् षट्) छह-छह [स्थूल इन्द्रियों और उनकी सूक्ष्म शक्तियों से सम्बन्धवाले] (उर्वीः) विस्तृत (द्यावापृथिवीः) प्रकाशमान और अप्रकाशमान लोकों को (आहुः) बताते हैं ॥१६॥

    भावार्थ - विद्वानों ने निश्चय किया है कि परमेश्वर के सामर्थ्य से स्थूल इन्द्रियाँ और उनकी सूक्ष्म शक्तियाँ उत्पन्न हुईं और उनके ही आश्रित संसार के सब पदार्थ हैं ॥१६॥

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