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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 8/ मन्त्र 8
    सूक्त - भृग्वङ्गिराः देवता - सर्वशीर्षामयापाकरणम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - यक्ष्मनिवारण सूक्त

    यदि॒ कामा॑दपका॒माद्धृद॑या॒ज्जाय॑ते॒ परि॑। हृ॒दो ब॒लास॒मङ्गे॑भ्यो ब॒हिर्निर्म॑न्त्रयामहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यदि॑ । कामा॑त् । अ॒प॒ऽका॒मात् । हृद॑यात् । जाय॑ते । परि॑ । हृ॒द: । ब॒लास॑म् । अङ्गे॑भ्य: । ब॒हि:। नि: । म॒न्त्र॒या॒म॒हे॒ ॥१३.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदि कामादपकामाद्धृदयाज्जायते परि। हृदो बलासमङ्गेभ्यो बहिर्निर्मन्त्रयामहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदि । कामात् । अपऽकामात् । हृदयात् । जायते । परि । हृद: । बलासम् । अङ्गेभ्य: । बहि:। नि: । मन्त्रयामहे ॥१३.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 8; मन्त्र » 8

    पदार्थ -
    (यदि) यदि वह [बलास रोग] (कामात्) इच्छा से [अथवा] (अपकामात्) द्वेष के कारण (हृदयात्) हृदय से (परि) सब ओर (जायते) उत्पन्न होता है, (हृदः) हृदय के (बलासम्) बलास [बल के गिरानेवाले, संनिपात, कफादि रोग] को (अङ्गेभ्यः) अङ्गों से (बहिः) बाहिर... म० ५ ॥८॥

    भावार्थ - जैसे उत्तम वैद्य निदान पूर्व बाहिरी और भीतरी रोगों का नाश करके मनुष्यों को हृष्ट-पुष्ट बनाता है, वैसे ही विद्वान् लोग विचारपूर्वक अविद्या को मिटा कर आनन्दित होते हैं ॥१॥ यही भावार्थ २ से २२ तक अगले मन्त्रों में जानो ॥

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