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  • यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 33
    ऋषिः - वारुणिः सप्तधृतिः देवता - आदित्यो देवता छन्दः - विराट् गायत्री, स्वरः - षड्जः
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    ते हि पु॒त्रासो॒ऽअदि॑तेः॒ प्र जी॒वसे॒ मर्त्या॑य। ज्योति॒र्यच्छ॒न्त्यज॑स्रम्॥३३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते। हि। पु॒त्रासः॑। अदि॑तेः। प्र। जी॒वसे॑। मर्त्या॑य। ज्योतिः॑। यच्छ॑न्ति। अज॑स्रम् ॥३३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ते हि पुत्रासो अदितेः प्र जीवसे मर्त्याय । ज्योतिर्यच्छन्त्यजस्रम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ते। हि। पुत्रासः। अदितेः। प्र। जीवसे। मर्त्याय। ज्योतिः। यच्छन्ति। अजस्रम्॥३३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 3; मन्त्र » 33
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    भाषार्थ -

    जो (अदितेः) अखण्डित कारण शक्ति के (पुत्रासः) पुत्र, मित्र, अर्यमा, वरुण नामक हैं (ते) वे पूर्वोक्त (हि) निश्चय से (मर्त्याय) मनुष्य के (जीवसे) जीने के लिये (अजस्रम्) निरन्तर (ज्योतिः) तेज को ( प्रयच्छन्ति ) उत्तम रीति से प्रदान करते हैं ।। ३ । ३३ ।।

    भावार्थ -

    ये कारण से उत्पन्न हुये प्राणवायु आदि सदा ज्योति प्रदान करते हुये सबके जीवन वा मरण के लिये निमित्त होते हैं । ३ । ३३ ।।

    भाष्यसार -

    आदित्यों का कर्म-- मित्र=प्राण, अर्यमा=सूर्य, वरुण=वायु वा जल--ये कारण रूप प्रकृति से उत्पन्न होने से अदिति (प्रकृति) के पुत्र कहाते हैं। अखण्डित (अविनाशी) होने से प्रकृति का नाम अदिति है। ये प्राण आदि सब के जीवन के लिये ज्योति प्रदान करते हैं। सबके जीवन और मरण का निमित्त भी यही हैं ।। ३ । ३३ ।।

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