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  • यजुर्वेद - अध्याय 26/ मन्त्र 25
    ऋषिः - मधुच्छन्दा ऋषिः देवता - सोमो देवता छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
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    स्वादि॑ष्ठया॒ मदि॑ष्ठया॒ पव॑स्व सोम॒ धार॑या। इन्द्रा॑य॒ पात॑वे सु॒तः॥२५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्वादि॑ष्ठया। मदि॑ष्ठया। पव॑स्व। सो॒म॒। धार॑या। इन्द्रा॑य। पात॑वे। सु॒तः ॥२५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वादिष्ठया मदिष्ठया पवस्व सोम धारया । इन्द्राय पातवे सुतः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    स्वादिष्ठया। मदिष्ठया। पवस्व। सोम। धारया। इन्द्राय। पातवे। सुतः॥२५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 26; मन्त्र » 25
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে (সোম) ঐশ্বর্য্যযুক্ত বিদ্বান্! আপনি যে (ইন্দ্রায়) সম্পত্তির (পাতবে) রক্ষা করিবার জন্য (সুতঃ) নিষ্কাশিত উত্তম রস তাহার (স্বাদিষ্ঠয়া) অতিস্বাদযুক্ত (মদিষ্ঠয়া) অতি আনন্দদাত্রী (ধারয়া) ধারণকারিণী ক্রিয়া দ্বারা (পবস্ব) পবিত্র হউন ॥ ২৫ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–যে সব বিদ্বান্ মনুষ্য সর্ব রোগ নাশক আনন্দদাতা ওষধিসমূহের রসকে পান করিয়া স্বীয় শরীর ও আত্মাকে পবিত্র করে তাহারা ধনাঢ্য হইয়া থাকে ॥ ২৫ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - স্বাদি॑ষ্ঠয়া॒ মদি॑ষ্ঠয়া॒ পব॑স্ব সোম॒ ধার॑য়া ।
    ইন্দ্রা॑য়॒ পাত॑বে সু॒তঃ ॥ ২৫ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - স্বাদিষ্ঠয়েত্যস্য মধুচ্ছন্দা ঋষিঃ । সোমো দেবতা । গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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